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________________ अनुसंधान - १९ 139 हस्तप्रतोना संशोधन माटे थई रहेला प्रयासो अने संशोधक विद्वानोनी सज्जता वगेरे जोईने आनंद थाय. प्रो. के. आर. चन्द्रानुं अर्धमागधीनं संशोधन ए जैन आगमोना अभ्यासक्षेत्रे महत्त्वनुं कार्य गणाय. आ अंकमां आ विषय पर तेमनो एक लेख छे. विद्वानोना प्रयासो थकी आवी मूल्यवान माहितीओ प्रकाशमां आवती रहे छे, परंतु आपणा विद्वान मुनिओ तेनाथी अजाण ज रही जाय छे. संशोधक मानस केळवायुं नथी ए एक खेदजनक वास्तविकता छे. प्राकृतना अभ्यासीओए चंद्राजीना 'प्राकृत भाषाओंका तुलनात्मक व्याकरण'नो पण अभ्यास करवो जोइए. 'अजय', 'अजेय' अने 'अजय्य'- आ शब्दोनी चर्चा करतो एम. ए. मेहेन्दलेनो लेख संस्कृत भाषानी खूबीओ समजावी जाय छे. 'अजेय' नो अर्थ छे - 'जेने जीतवुं योग्य न गणाय एवो.' 'अजय्य' नो अर्थ छे - 'जे जीती शकाय तेवो नथी.' 'अजय' नो अर्थ छे 'जे जीती शके तेवो नथी. ' - वी. एम. कुलकर्णीना लेखमां श्री हरिवल्लभ भायाणीनी भाषाकीय सूझ अने प्राचीन साहित्यनी समजनां रसप्रद उदाहरणो वांचवा मळे छे. लहियाओना हाथे भ्रष्ट अने भ्रांतिजनक बनी गयेला शब्दोने स्थाने सुसंगत बने एवो पाठ भायाणीजी कल्पी शकता हता. पाठने पाछळथी मळेली प्रतोना पाठ द्वारा पुष्टि मळे एवं बनतुं. श्रीथोमस ओबर्लीनो लेख पण श्रीभायाणी साहेबना उदार अने साहित्यसेवाने समर्पित व्यक्तित्वने अंजलि आपे छे. आ लेखमांना बे-चार शब्दो विशे कट्टलिया : गुजरातीमां 'कातळी'. कच्छीमां आ शब्द 'गतरी' एवा रूपमा आजे प्रचलित छे. अर्थ छे : शेरडी के वांस जेवी वनस्पतिना सांठानो बे गांठो वच्चेनो भाग. साधुओना समुदाय माटे वपराता 'गच्छ' शब्दनो मूळ अर्थ 'वृक्ष' छेते आ लेखमां ज वांच्यं. दुल्ललिय : गुजरातीमां 'दुलो' (दुलो राजा) अने कच्छीमां 'धुल्लो' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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