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विहंगावलोकन
मुनि भुवनचन्द्र
३०० लगभग पानां, सुंदर मुखपृष्ठ, उच्च स्तरीय संशोधनलेखो, भायाणी साहेब विषयक अंजलिलेखो वगेरे द्वारा 'अनुसंधान'नो 'श्री हरिवल्लभ भायाणी स्मृति विशेषांक' एक ग्रंथ जेवो तथा भायाणी साहेबना नाम-कामना प्रतीक जेवो बन्यो छे. देश-परदेशना मोटा गजाना विद्वानोए आमां लख्युं छे. अंक प्रगट थवामां विलंब भले थयो पण श्रीशीलचन्द्रसूरिए लीधेलो परिश्रम देखाइ आवे छे.
'गुणवान ज गुणवानने ओळखी-समजी शके'- ए उक्तिनी सत्यता श्रीजयंत कोठारी जेवा समर्थ विद्वानोना भावसभर अंजलिलेखो वांचतां प्रत्यक्ष थाय छे. भायाणी साहेब माटे एमणे योजेखें उपमान 'वडलो' केटलुं सचोट छे ! श्री हसु याज्ञिकनो लेख भायाणीजीना सालस-उदार व्यक्तित्वनी छबी उपसावे छे, तो श्री कुमारपाळ देसाईनो लेख भायाणीजीना वैदुष्य तथा वाग्व्यापारनो आलेख आंके छे. "अनेक दुर्घटनाओमांथी सर्जायेली घटना एटले हरिवल्लभ भायाणी' शीर्षक लेखना लेखक, नाम छपायुं नथी. भायाणीजीनां मूळ कई धरतीमां हतां, एमनो पिंड कया द्रव्यनो बनेलो हतो ए तो आ लेख वांचीए तो ज समजाय. महान उपलब्धिओ सस्ती नथी मळती. आ सनातन सत्य भायाणीजीना जीवननी घटनाओमांथी तरी आवे छे.
. भायाणी साहेबनी जन्म अने अवसाननी तारीखो अंकमां क्यांय नथी. तेमनी छबी साथे ए मूकवा जेवी हती.
प्रो. जे. सी. राइटनो गांधारी प्राकृत विषयक लेख एक नवी, रोमांचक वात लइने आवे छे. छेक ईसुनी पहेली सदीथी आरंभीने लखायेली त्रिपिटकनी हस्तप्रतो अफघानिस्तानमांथी मळी आवी छे अने लंडन, वोशिंग्टननी संशोधन-संस्थाओमां तेमनो अभ्यास थई रह्यो छे. आ प्रतो भोजपत्र पर, खरोष्ठी लिपिमां लखायेली छे. आ हस्तप्रतोनी भाषा पालिथी जरा जुदी प्राकृत छे. विद्वानोए एना माटे 'गांधारी प्राकृत' एवु नाम योज्युं छे. आ
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