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________________ अनुसंधान - १९ बेली न होवे दुःखमां जो न करे सहाय स० । इच्छित सुख आपे नहिं स्यांनो साहिब थाय स० ||३|| मल्लि० ॥ अवगुण गुण करी लेखवें विरचे न पडिया वंक स० । साचा साहिब ते सहि तजीयें तेहनो अंक स० ||४|| मल्लि० || श्रीजिनचंद्र बहु गुणनीलो मल्लिनाथ अरिहंत स० । हीरसागर बिरुद निवाजीयें वात सकलनो तंत स० ॥५॥ मल्लि० ॥ इति श्री मल्लिनाथ स्तवनम् ॥ श्री मुनिसुव्रतजिनस्तवन आवो रे स्वामीजी ए देशी ॥ श्रीमुनिसुव्रत स्वामीजी मया करो जगधणी रे । ओलगाडी मानो दासनी कांई निजर करो मो भणी रे | श्री० ॥१॥ हुं छं किंकर स्वामी तुमारो दासने दीजे दिलासो रे । सेवक नयण निहालीइ हुं खिण न तनुं तुम पासो रे ॥ श्री० ॥२॥ रांक हाथे जे रतन आव्युं किम मेलुं महाराजो रे । कामकुंभ चिंतामणी सुरतरु फलियो मुझ घर आजो रे | श्री० ॥३॥ अव उपरि जिम दया कीधी भरुअच्च नयर मझार रे । अनुचरनें निज लहरें करी ऊतारो भवपार रे । श्री० ||४|| आज महोदय माहरो मुझ मलीया त्रिभुवनस्वामी रे । श्रीजिनचन्द्र सुख सागरु हीर नमें शीर नामी रे | श्री० ॥५॥ इति श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवनम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 127 www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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