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________________ 126 श्रीअरनाथस्तवन अरज सुणो सूडार रा० ए देशी ॥ अरज अरज सुणो अरनाथजी होजी गुणधणी गिरुआ जगनाथ । अहनिशि अहनिशि उभा उलगें होजी करुणाकर स्वामी अनाथ अर० ॥ १॥ एक एक तारी छै प्रभु उपरे होजी जिम मोरा मन मेह । चातुक चातुक पीयु पीयु करे होजी तिम समरुं मन गेह | अर० ॥२॥ प्रभुजी प्रभुजी तुमे तो जइ दूरि वस्या होजी शी पेर करीइ स्वाम । ध्यान ध्यान आकर्षणे प्रभुजी आणीया होजी मुझ मंदिर ठाम अर० || ३ || वासो वासो वस्या मुझ मन्त्रमां होजी स्वामी जिनिं रहवा जोग । रत्न रत्नत्रयीना सुख दीजीइ होजी मिलीया अविहड भोग अर०||४|| March-2002 श्रीजिन श्रीजिनचंद्र लहिर करो जगधणी होजी जीनजी करो रे पसाय । हीर हीरसागर जिनगुण स्तवे होजी नमे लळीलळी पाय अर० ॥५॥ इति श्री अरनाथ स्तवनम् ॥ १. मुझ मन मंदिर श्रीमल्लिनाथस्तवन हमीरानी देशी ॥ साहिब सेवा साधतां जो नसरे कोई काम सनेही । अंतरजामी अहनिशे कुण जपशें तुम नाम सनेही ॥१॥ Jain Education International मल्लि जिणेसर सेवीई, ए आंकणी । निसवारथ कोई केहने चरणे न नामे सीस स० । सेवक तोहिज सेवसें जो पहुंचे मननी जगीस स० ||२|| मल्लि० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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