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________________ 128 श्रीनमिजिनस्तवन श्री ऋषभानन गुणनीलो । श्रीनभिप्रभुजीने सेवतां होये सुखनो पूरण गेहरे जिणंद । चरणकमलनी सेवनां करतां वधइं गुणनेह रे जि० ॥ श्री० ||१|| वप्राराणीनो नंदलो जेहने सेवइ चोसठि इंद्र रे । जि० ॥ त्रिगडे बेठां सोहि प्रतिबुझवई सुरनरवृंद रे || जि० ॥ श्री० ॥२॥ March-2002 तुमे सारथी शिवपुरतणां समकित परम आधार रे जि० । ते समकित मुझ दीजई आतम हित सुखकार रे जि० ॥ श्री० ॥३॥ त्रिण तत्त्व मुझ दीजीइं करो करुणा हिवई सुखदाय रे जि० । दायक नायक उपमा तुमारी तुम भगते सुख थाय रे जि० ॥ श्री० ॥४॥ १. 'तुमारी' नथी. श्रीजिनचंद्र मया करो दोलति दाई सुखकंद रे जि० । हीरसागर सुख संपदा ए तो प्रणमें परमाणंद रे जि० | श्री० ॥५॥ इति श्री नमिनाथ स्तवनम् ॥ श्रीनेमिनाथस्तवन नरपती रे सीख दीओ अमने हवै ए देशी ॥ Jain Education International श्री नेमजी रथ फेरी पाछा किम वल्यारे साहिबा, नाणी प्रीत लगार । वयण मानो सयण वारु । नेमजी गोखे बेठी पीयुने वीनवे रे सा० किम छोडो राजुल नार । व० | श्री० ||१|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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