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________________ 122 March-2002 अनादि निगोद मझार स्वामी हुं वस्यो हो लाल स्वा० । मोह मदिरानी छाक थकी विषये धस्यो हो लाल वि० ॥ पुद्गलतणो स्वभाव ते रमण मुझ मन गमे हो लाल र० । जिहां तिहां इंद्रि स्वाद ते रिदय चित्त तिहां रमे हो लाल रि० ॥२॥ एहवं मुझ स्वभाव ते साहिब मांहरो हो लाल सा० । हिवइ मुझ मलीयो निर्यामक साथ ज ताहरो हो लाल सा० ॥ अनंतचतुष्टय श्रेणि प्रभुजीना गुण घणां हो लाल प्र० । श्रीजिनचंद्र हीर नमें पय तुम तणां हो लाल न० ॥३॥ इति श्री वासुपूज्यजिन स्तवनम् । १. वसुपूज (श्रीविमलनाथस्तवन) श्री रामपुरा बाझारमा ए देशी ॥ विमल जिणेसर ध्याईइं हीयडे हरख भराय मेरे लाल । श्यामा राणीइं जनमीओ इन्द्राणी मिलि गुण गाय मेरे लाल ॥ वि० १॥ विमल जनम करवा भणी सेवो विमल जिणंद मे० । मुख सोहे पूनिम चांदलो हरे संकट रयणि दिणंद मे० ॥ वि० २ ॥ विमलज्ञान ते जाणीइ जे सेवे एक चित्त मे० । विमल करें भवि जीवनें जे भगति युगति करे नित्त मे० ॥ वि० ३॥ निमित विमलें अनुभव 'सधिइं विमलपदे होइ ध्येय मे० । सुख अनंतु प्रगटे तिहां प्रगटे सर्वज्ञ ज्ञेय मे० ॥ वि. ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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