SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-१९ 121 श्रीश्रेयांसजिनस्तवन बीदलीनी ए देशी ॥ श्री श्रेयांस जिन सुगुण सोभागी, ए तो जोतां भावठि भागी रे । सुणि प्रभु अंतरजामी, तुम्हें लीधो शिवपुरीनो राज, 'तुमे सार्यां पोतानां काज रे ॥ सु० ॥१॥ उपगारी जे कहवाइ 'ते तो सहुने सरिखां थाइ रे सु० । एकने घणु एकने ओछु ते प्रीती जणाइ छोच्छी रे सु० ॥२॥ बिरुद तुम्हारो गरीबनिवाज सेवकनी वधारो लाज रे सु० । तुम्हे महिमासागर ईश तुम्हें दूर करी सवि रीस रे सु० ॥३॥ ओछा रे केरो नेह जेहवो खारीनो दीसे त्रेह रे सु० । 'चंद चकोरनी प्रीति सुहावे तिम प्रभुजीश्युं गुण गोठ भावेरे सु० ॥८॥ श्रीजिनचंद्र करुणानिधि हवे प्रगटी रिद्धि ने सिद्धि हो सु० । हीरसागर प्रभु गुण गाया मनह मनोरथ पाया हो सु० ॥५॥ इति श्री श्रेयांसनाथ गीतं ॥ १. 'तुमे' नथी २. 'तेतो' नथी ३. चंद्र श्रीवासुपूज्यजिनस्तवन थारा मोहलां उपर मेह ए देशी ॥ 'वसुपूज्यसुत द्यो सेवा प्रभु तुम पयतणी हो लाल प्र० । अवर सेवा नावई दाय के चित्त चाहुं तुम भणी हो लाल चि० ॥ भव अनंत मझार साहिब मुझ मिल्या हो लाल सा० । भवभवना संताप दुःख ते सवि टल्या हो लाल दु० ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy