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________________ 78 जिम मन पुहचइ अलज्यु रे, तिम जउ पुहचइ बांहो दूरि वसंता साजना रे, . सफल हुइ ऊमाहो । आगळ मन अने नयनने जुदां पाडवामां आव्यां हतां. अहीं मन अने बाहुने जुदां पाडवामां आव्यां छे. मन तो पोतानी उत्कंठाने पहोंचे छे - संतोषी शके छे (प्रियजन, स्मरण चितवन करीने), तेम बाहु जो पहोंची शकता होत तो ? तो दूर वसता प्रियजनने भेटवानी होंश पूरी थात. मननी गति अने बाहुनी गतिनो आ विरोध चमत्कारक छे. सगपण हुइ तु ढांकीइ रे, प्रीति न ढांकी जायो, विहाणुं छाबि न छाहीइ रे, लहिरि न दोरि बंधायो । सगपण अने प्रीति वच्चे अहीं करवामां आवेलो भेद मर्मरसिक छे अने प्रयोजायेला बे दृष्टांतो - 'प्रभात-सूर्योदयने छाबडे ढांकी न शकाय, लहेर-मोजाने दोरीथी बांधी न शकाय' - अशक्यताना अर्थने सबळ रीते पुष्ट करे छे. बे एक ताजगीभरी अलंकार रचनाओ पण जओ : ...................कीली, सुरिजन नेहकी म करे ढीली । स्नेहनी कडी तो जाणीती छे. अहीं स्नेहने खीली साथे सरखाववामां आवेल छे. आ खीली ते बे वस्तुने जोडवानी माटेनी जड, स्क्रू. स्क्रू ढीलो पडे तो बे वस्तु छूटी पडी जाय. सुजन स्नेहनी आ ‘कीली'ने ढीली न थवा मनभंडार भर्यु घणु रे, युं जीवलोक निगोदिइ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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