________________
79
ठालवस्यूं सांई मिलिइ रे,
झीलीसिउं नेह-होदि ।। वनस्पतिमां अनंत जीव रहेला छे तेम मनभंडार भावोथी-वातोथी खीचोखीच भर्यो छे ए तो जैन कविने ज सूझे एवी उपमा छे, केमके जैन मत मुजब वनस्पति ए अनंत जीवोनं एक साधारण शरीर छे. स्वामी मळशे एटले ए भंडार ठालवीशुं अने स्नेहना होजमां नाहीशुं एवी अभिलाषा व्यक्त थई छे.
'लेख'मां कर्ता पोतानुं नाम 'जयवंत पंडित' आपे छे, 'चंद्राउला' मां 'जयवंतसूरि'. तेथी संभव एवो छे के 'लेख'-कृति पहेलां रचायेली होय अने 'चंद्राउला'-कृति पछीथी, कर्ताने आचार्यपद मळ्या पछी रचायेली होय. 'चंद्राउला'नी वहेलामां वहेली हस्तप्रत सं. १६३५नी मळी छे, जे कर्ताना जीवनकाळनी छे. पण ए प्रथमादर्श प्रत नथी. कति सं. १६३५मां के तेना केटलांक वर्ष पूर्वे रचायेली होई शके. प्रतपरिचय अने पाठसंपादन पद्धति
__ आ कृतिनी चार हस्तप्रत अने एक मुद्रित पाठ मळ्या छे, जे नीचे मुजब छे :
क : महावीर जैन विद्यालय, मुंबई, क्रमांक ८२२. पत्र २, २५.५ X १०.५ सें.मि., पत्रमा १५ लीटी, बीजा पत्रनी पाछळनी बाजुओ १२ लीटी, दरेक लीटीमां आशरे ३९ अक्षरो, वच्चे चोखंडं, आरंभमां भले-मींडु छे. पडिमात्रानो थोडो उपयोग थयो छे अने 'ख'ने माटे 'ष' वपरायो छे.
अक्षरो मोटा, चोख्खा अने सुघड छे. सं. १६३५मां कविना जीवनकाळमां लखायेली आ प्रत सौथी जूनी प्राप्त प्रत छे. थोडा लेखनदोषो होवा छतां आ सौथी वधु आधारभूत प्रत छे.
ख : लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद खरीद सूचिक्रमांक ३५०१. गुटकामां पत्र ४ थी ७ (पहेली बाजु), १३ X १२.५ सें.मि., पत्रमा १८ लीटी, दरेक लीटीमां आशरे २४ अक्षरो वच्चे चोखंडु, जेमां चार अक्षर लखेला छे. आरंभमां भले-मींडं करी 'श्रीवीतरागाय नमः'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org