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________________ 77 ने पछी 'चंद्राउला' एक बीजुं दृष्टांत योजे छे, जे नवुं ज छे अने अस्पष्ट पण रहे छे : जेहन जेह स्यूं नेहतरंगा, ते तस हैडइ लख्या सरंगां, दूरिथी पानि प्रीति ज राखी, Jain Education International अंबर मृगमद नेहई साखी । दूरथी प्रीति राखी ते पान क्युं ? केसर - कस्तूरी एना स्नेहना साक्षी ते केवी रीते ? शुं अहीं नागरवेलना पाननो निर्देश हशे ? जे पोतानामां लाली छुपावी रहेल होय छे अने मोढामां चवातां एने प्रगट करे छे ? केसर - कस्तूरी पानना बीडामां नखातां द्रव्यो तरीके अहीं हशे ? पण आमां दूरत्वनी वात क्यां आवे ? कंई समजातुं नथी. बन्ने कृतिओ समान पदार्थोंने पोतानी कंईकंई आगवी छटाथी व्यक्त करे छे ते उपरांत एमां एकबीजाथी स्वतंत्र कहेवाय एवां रसप्रद भाव, विचार ने अभिव्यक्तिनां उन्मेषो पण जडें छे. 'चंद्राउला'ना आवा थोडा उन्मेषो जोईए : प्रीतिइं भला पारेवडां रे, जेहनइ विरह न थायो, अह्म सरखा जंवारडु रे, दैव तिई सरज्यउ कांयो । दैव तई सरज्यउ कांइ असारु, दुखी माणसनु रे जंवारु, सजनवियोगिनं प्राण धरी जइ, नेह बधनामी तु सी कीजइ । जोडमां ज ऊडतां पारेवांने पोतानी विरहस्थितिनी सामे मूकवामां नूतनता छे ने एथी विरहभावने एक धार मळे छे. सजनवियोगे प्राण धरवानो अफसोस ए कोई नवी वात नथी पण एथी स्नेहने बदनामी मळे छे ए वात कंइक नवी छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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