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एक सूचनः प्रकाशित प्रत्येक लेखना लेखक / संपादकना सरनामा पण लेख साथे अथवा अंकमां कोइ एक स्थळे आपवा जोइए.
श्रीजयवंतसूरि कृत 'बार भावना सज्झाय 'नो विषय परंपरागत वस्तुनो छे, तेम छतां कविनी प्रौढ रचनाशैलीथी कृति वाचनक्षम बनी छे. मध्यकालीन गुजरातीमां छंद, बंध, गेय रचना प्रकारोमां केटलुं वैविध्य हतुं ते आवी कृतिओ जोवाथी ध्यानमां आवे छे. श्री जयंत' भाई हमणां हमणां 'जयवंत' सूरिनी रचनाओ बहार लाववामां जोडाया छे, ते योग्य ज छे (तेओ समानधर्मा अने समाननामा पण छे ने !) आ कृतिमांना अमुक शब्दोनो विचार करीए .
बूझ - (९.८ ) : 'समजवुं' अने 'समजाववुं' एम बने अर्थ आप्या छे, किंतु 'बूझ - ' 'समजवुं' अने 'बूझव' - 'समजाववुं' एम बे जूदा आपवा जोइता हता. 'बूझव'- प्रेरक अर्थमां छे. १.८मां आवो अर्थ लेवानो थाय छे.
सोविन्न (६.१०) : 'सुवर्णनुं' एवो अर्थ आप्यो छे अने मूळ तद्धित प्रत्ययांत 'सौवर्ण' मान्युं छे. कविनी ढब जोतां तद्धित प्रत्ययवाळं मूळ न कल्पीए तो चाले. छंदनी जरूरत प्रमाणे कवि शब्दनी मात्रा वधारवा अक्षरोने संयुक्त बनावे छे. 'यौवन्न' (प्र. ७) मां एम कर्तुं छे. ६.१०मां पण 'सोवनसोविन' नुं 'सोविन्न' कर्यं होय तो ते असंभवित नथी.
कडी १५नी आंकणीमां 'साधु मुगतिनुं मागो रे' छे, आमां 'साधु' ए संबोधन नथी, 'साध- ' धातुनुं आज्ञार्थ रूप छे. 'मुक्तिनो मार्ग साधी लो' एवो अर्थ छे. 'मागो' शब्दनो अर्थ पण शब्दकोशमां लइ लेवा जेवो छे.
पायो ( १६.४ ) : आनो अर्थ 'पाक' कर्यो छे ते भ्रान्तिजनित छे. जैन मान्यता अनुसार नरकमां जीव सांकडी कुम्भीमां उत्पन्न थाय छे त्यारे तेनी स्थिति माथुं नीचे, पग ऊपर एम होय छे, तेनो अहीं उल्लेख छे. 'पायोपाय' एटले 'पग' समजवो.
वडइ (२१.१ ) : आ तृतीयाना अर्थनो अनुग 'वडे' ज छे के बीजो कोई शब्द छे ? 'वडे' अनुग ए समये प्रचलित थइ गयो हतो ?
देठ (२७.२) : अहीं हस्तप्रतना वाचनमां चोख्खी भूल थइ छे. 'देव' शब्द 'देठ' तरीके वंचायो छे. कडी २९मां 'अतिअ सारी' छपायुं छे
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