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________________ 202 पत्रचर्चा - २ विहंगावलोकन मुनि भुवनचंद्र __'अनुसंधान'नो पं. श्रीदलसुखभाई मालवणिया स्मृति विशेषांक, आपणा माटे भायाणीसाहेब स्मृति अंक बनी गयो. आ समर्थ विद्वाननो हस्तस्पर्श हवे 'अनुसंधान'ने नहीं मळे. आ विद्यापुरुषनी विदायथी भारतनुं विद्याजगत रंक बन्युं छे. . भारतीय विद्या, विवेचन, भाषा, जैन विद्या जेवा क्षेत्रोने स्पर्शता अने सुख्यात विद्वानोना हाथे लखायेला संशोधन पत्रो तथा अभ्यास लेखो द्वारा श्रीमालवणीयाजी, सुयोग्य संभारणुं आ अंक द्वारा रचायुं छे. जैन दृष्टिए 'स्मृति' पदार्थनी चर्चा करतो श्रीमोहनलाल महेतानो लेख, जैन जीवविज्ञान विषयक श्रीसिकदरनो लेख, लोकपुरुषनी जैन मान्यतानी विचारणा करतो जापानी विद्वान श्रीसुजुको ओहीरानो लेख-जैन विद्वानो अने विद्वान मुनिवरोए अवश्य वांचवा जेवा आ लेखो छे. आ लेखो अंतिम निष्कर्षरूप भले न होय, परंतु आधुनिक ज्ञान-विज्ञान अने जैन तत्त्वज्ञान वच्चे ज्यां/केटलो मेळसुमेळ छे ते जाणवा माटे आ लेखोमांनी सामग्री सारी माहिती पूरी पाडे छे. आवा संशोधनलेखोनी समीक्षा तो ते ते विषयना अधिकारी विद्वानो ज करी शके. 'विहंगावलोकन'नी मर्यादा तो 'अनुसंधान'मां छपाती प्राचीन कृतिओनुं संपादननी दृष्टिए अवलोकन करवा सुधीनी ज छे. श्रीमालवणिया विषे त्रण लेख आ अंकमां छे. मालवणियाजीनी साहित्यसृष्टिनी झांखी करावतुं एक संकलन आमां छे, ए ज रीते तेमनो चरित्रलेख पण अपायो होत तो सारं थात. लागे छे के बंने संपादको तेमना स्वास्थ्यनी गरबडना कारणे आवो लेख मेळवी शक्या नथी. 'पत्रचर्चा' अने 'सिंहावलोकन' द्वारा श्रीढांकी साहेब पुष्कळ पूरक वातो लइ आव्या छे. विद्वानो द्वारा आ रीते 'पूर्ति' थती रहे तो प्रकीर्ण छतां महत्त्वनी घणी बाबतो एकत्र थती जाय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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