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________________ 197 एक अटकळ थाय छे. अजाराना उपरोक्त स्तूपमां जे ऋषभजिनपादुका छे, तेमां बन्ने पग उपर आवी आकृति दोरेली जोवा मळे छे. अने ए ज आकृति शाहबागनी हीरसूरि - पादुका पर पण कोतरेली जोवा मळे छे. आ परथी एम कल्पना थाय के शाहबागमां पण, एकलां गुरुपगलां होय ते शोभे नहीं, के पछी त्यां जल्दी कोई जाय नहीं, तो त्यां जिनेश्वरनां पगलां स्थापवामां आवे तो मजानुं थाय; आम विचारीने, पाछळथी त्यां जिनस्तूप स्थाप्यो होय तो ते शक्य खरुं. एवुंये बने के अजारानां ने शाहबागनांबन्ने पगलां साथे ज बन्यां होय (अजारामांना लेख अनुसार १८मा शतकमां) अने ते एक ज कारीगरे बनाव्यां होय. जो आ अटकळ वाजबी, तर्कसंगत अने व्यवहारु लागे, तो पछी शाहबागनी जे पहेली देरी आजे विजयदानसूरिजीनी देरी तरीके ओळखाय छे, ते देरी ज वस्तुतः हीरविजयसूरिजीनी छे एम स्वीकारवुं पडे. सं. १६५२५३मां उतावळे बनेलो स्तूप तथा पादुका काळांतरे घसायां होय अने तेथी तेने भूगर्भमा राखीने ते पर नवो स्तूप तथा नवां हीर- पगलां निर्भ्यां होय, एम समजवुं मुश्केल न रहे. खरेखर तो अंधाधूंधीना अने स्थानिक जैन वर्गनी पडतीना लांबा गाळामां, ऊना संघ पासे, कोई प्रकारनो इतिहास के पुरावा जळवाया नहि, तेथी ज आ बधी अटकळो करवानी आवी छे. त्रीजी वात, जे उपरनी अटकळने आडकतरुं पण समर्थन आपे छे, ते ए छे के जीर्णोद्धार वखते विजयसेनसूरिजीना अने विजयसिंहसूरिजीना नामे प्रसिद्ध देरीओने उतारीने पायामांथी जीर्णोद्धार करवानो थयेलो. तेथी तेमांनी गुरुपादुकाओ पण खसेडेली हती. तेनी पुनः प्रतिष्ठा ई. २००१ना जान्युआरीमां करी, त्यारे ते परना घसाता जता लेख उकेलवानी मथामण करी । तो ते बन्ने पादुका विजयसेनसूरिनी तथा विजयसिंहसूरिनी नहीं होवानुं, अने अनुक्रमे ते बन्ने पादुका श्रीशान्तिचन्द्रगणीनी तथा पं. श्रीधनविजयजीनी होवानुं स्पष्टपणे वंचाय छे. अने आ उपरथी पण, अन्यत्र स्वर्गारूढ थया होय तेनां पगलां अहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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