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अनुसंधान-१७• 207 रहे छे तेवी रीते मनो स वंचावाने लीधे ज आयामनुं आयासे वंचायु छ.५ खरेखर द्राघृ धातुनो साचो अर्थ आयाम: छे कारणके द्राधिमान, द्राधिष्टआ बधा शब्दोचें मूळ द्राघ धातु ज छे. आम धातुओना अर्थनी बाबतमां कौशिकनी दृष्टि साचा अर्थने पकडे छे, एवी छाप पडे छे..
६. हेड विबाधायाम् । 'क्षीत'. (पृ. ५६)- कौशिकस्तु नैतानाह । क्षीरस्वामी लखे छे के कौशिक आ धातुओनो पाठ करता नथी. आ परथी पण स्पष्ट थाय छे के कौशिके समग्र धातुपाठ पर वृत्ति लखी होवी जोईए. क्षीरस्वामीए अहीं 'एतान्' एम बहुवचननो प्रयोग कर्यो छे तेथी 'हेड विबाधायाम्' अने ते पहेलांना ओछामां ओछा बे धातुओ 'पिट शब्दे' अने "विट आक्रोशे' एम त्रण धातुओनो कौशिक धातुपाठमा समावेश करता नथी एवो अर्थ थयो. 'माधा', अने 'धाप्र'मां हेड विबाधायाम् अने विट आक्रोशे नथी. पिट शब्दसंङ्घातयोः धातु बनेमां-माधावृ (पृ.१०४) अने धाप्र(पृ.२३)मां अने बीजा धातुपाठोमां मळे छे. हेड विबाधायाम् भाग्ये ज कोई धातुपाठमां मळे छे, ज्यारे मोटेभागे हेठ विबाधायाम् मळे छे. आक्रोशना अर्थमां विट मात्र कवि(पृ.२३)मां मळे छे. आ संदर्भमां ग. बा. पल्सुलेनो मत एवो छे अमुक धातुओ अमुक अर्थमां भाषा अने साहित्यमा प्रयोजाया नथी के पछीना समयमां अनार्य गणाईने धातुपाठमां समावाता बाध थया तेथी केटलाक धातुवृत्तिकारो तेमनो पाठ करता नथी.
७. कुडि वैकल्ये । क्षीत (पृ.५७) कुटि इति कौशिकदुर्गों । कुण्टति । कौशिक अने दुर्ग भ्वादि गणना कुडिने बदले कुटि एम पाठ करे छे. माधावृ (पृ.११४)मां आ ज प्रमाणे कौशिकने दुर्गना मतनो उल्लेख छे. सायणे त्यां नोंध्यं छे के धातुपाठमां अहीं डान्त धातुओना पाठर्नु प्रकरण चाले छे माटे शाकटायन प्रकरणना अनुरोधथी कुडि धातुने ज माने छे. दैव परनी पुरुषकार वृत्ति (पृ. ६७) कुठीति कौशिकदुर्गों । एम मत आपे छे. कुडिनुं कुण्डति, कुटिनुं कुण्टति अने कुठिनु कुण्ठति रूप थाय छे. मैत्रेय, कातंत्रकार, अने काशकृत्स्न वैकल्यना अर्थमां, कुड धातु आपे छे, चान्द्र जैनेन्द्र शाक्टायन अने हेमचंद्र कुट धातुनो पाठ करे छे ज्यारे बोपदेव कविमां कुड (पृ. २६) कुट (पृ.२२) अने कुठ
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