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________________ अनुसंधान-१७• 205 ज्योतिः' कह्यु छे, तो शतपथब्राह्मण (१.५.३.१)मां 'अवज्योत्यमानम्' प्रयोग मळे छे अने निरुक्त (२-२८-१६)मां ज्वलतिना कर्मोमां 'द्योतते ज्योतते'ए बे धातुनो पाठ मळे छे. तेथी मीमांसकनुं मानवं छे के अर्वाचीन आचार्योए पोताना समयमां आ धातुनो प्रयोग नहीं जोयो होय तेथी 'द्युत दीप्तौ'-ए धातुमांथी ज्योतिः निष्पन्न करे छे.२ आ संदर्भमां ग. बा. पल्सुलेनो मत नोंधवा जेवो २.२ तेओ माने छे के मळ धातु तो ज्युत् ज हशे पण पाछळथी प्राकृत भाषानी असरने लीधे जुत् थई गयो. आ दृष्टिए जोईए तो कौशिके प्राचीन धातुने दर्शाव्यो जणाय छे. बोपदेवना कवि. (पृ. २९)मां ज्युत् भासने' मळे छे ए नोंधवू घटे. ___३. विथ वेथ याचने । क्षीत. (पृ. २१)..... कौशिकस्तु अविथुरसिद्धये यातन इत्याह, नन्न व्यथेः सम्प्रसारणं किच्च । (उ. १. ३९) इति सिद्धेः । आ बाबतमा क्षीरस्वामी नोंधे छे के कौशिक विथुरः ने विथ वेथू परथी सिद्ध करवा आ बने धातुओनो अर्थ याचनाने बदले यातना सूचवे छे. क्षीरस्वामी आ मतनो अस्वीकार करतां कहे छे के आ धातुओ साथे विथुरः (पीडा आपनार)ने सांकळवानी जरूर नथी. कारणके उणादि सूत्र व्यथेः (उ. १. ३९)थी भ्वादि धातु 'व्यथ भयसञ्चलनयोः'नुं संप्रसारण थई विथुरः रूप थयुं छे. नोंधq घटे के माधावृ (पृ. १९१)मां पण व्यथ ने लगता धातुसूत्रमा ज विथुर:नी उपर्युक्त उणादिसूत्रथी ज व्युत्पत्ति दर्शावी छे, क्षीरस्वामीए कौशिकना आ मतनुं स्पष्ट खंडन कर्यु छे... 'माधावृ' (पृ. ६३)मां मळतो कौशिकनो मत आ धातुओने लगतो छे पण ते तेमना अर्थनी बाबतमां नहीं पण स्वरूपने लगतो छे. सायण विथवेथू याचने । धातसूत्रनी वृत्तिमां कहे छ : द्वितीयो दान्तः आद्यो धान्तः इति कौशिकः · कौशिकना मत प्रमाणे विधृ अने वेदृ एम आमनुं स्वरूप जोईए. तेमना आ मतने कोई पण धातुपाठनुं समर्थन मळतुं नथी. सायणे वधारामां एम पण नोंध्यु छ के कौशिकना मतनो क्षीरस्वामीए अस्वीकार कर्यो छे. धातुना स्वरूप अंगेना आ मतनो निर्देश ज क्षीरस्वामीए कर्यो नथी, तो तेने दोषित ठराववानो प्रश्न क्यां रहे ? सायण क्षीरस्वामीए आ धातुना अर्थ अंगेना कौशिकना मतना क्षीतमां करेला अस्वीकारनी वात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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