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________________ अनुसंधान-१७• 191 पं. सुखलाल संघवीए समदर्शी आ. हरिभद्रसूरिमां तथा प्रो. हीरालाल रसिकदास कापडियाए श्रीहरिभद्रसूरि नामक ग्रंथमां विस्तारथी चर्चा करी छे. तेथी ते अंगे अहीं चर्चा करवानुं यळ्युं छे. तथा तेमनो समय विक्रमनी आठमी सदीना उत्तरार्धनो पं. जिनविजयजीए आ. हरिभद्रसूरि कालनिर्णय ग्रंथमां अनेक प्रमाणो रजू करी निर्धारित कर्यो होवाथी अहीं ते विशे पण चर्चा करी नथी. ___ आ. हरिभद्रसूरिना ग्रंथोनी विशेषता ए छे के तेओ जैन दर्शननी चर्चा करता होय त्यारे पण अनेक अन्य दर्शनकारोनी वातो अने तेमना ग्रंथोनां उद्धरणो रजू करी तेनो निर्णय करे छे. साथे साथे अन्य दर्शनो साथेनो समन्वय पण करी आपे छे. आथी ज तेमने समदर्शी एवं विशेषण आपवामां आव्युं छे. ग्रंथनाम :___ अ कृति लोकतत्त्वनिर्णय नामे प्रसिद्धि पामेल छे. परंतु ग्रंथकारे स्वयं आ नाम प्रयोज्युं नथी. तेथी अहीं प्रस्तुत लघुकृतिना नाम विशे चर्चा करवी अस्थाने नहीं गणाय. ग्रंथकार मंगलाचरणमां जणावे छे के : प्रणिपत्यैकमने कं केवलरूपं जिनोत्तमं भक्त्या । भव्यजनबोधनार्थं नृतत्त्वनिगम प्रवक्ष्यामि ॥ अर्थात् एक-अद्वितीय, अनंतरूप, केवळज्ञानरूप अने सामान्य केवळीमां उत्तम श्रीवीतराग प्रभुने प्रणाम करी भव्यजनना प्रतिबोध माटे आ नृतत्त्वनिगमने कहीश. अहीं ग्रंथकार प्रस्तुत ग्रंथतुं नाम नृतत्त्वनिगम जणावे छे. ज्यारे प्रचलित नाम लोकतत्त्वनिर्णय छे. १९०२मां जैनधर्म प्रसारक सभा - भावनगरथी प्रकाशित थयेल ग्रंथमां प्रस्तुत श्लोकनो अनुवाद करतां नृतत्त्वनिगमनो अर्थ लोकतत्त्वनिर्णय को छे. आवो अनुवाद कया आधारे करवामां आव्यो ते एक विचारणीय प्रश्न छे. बीजा एक अनुवादमां जणाव्यु छे के लोकतत्त्वनिगम एटले लोकस्वरूपनो निर्णय कहीश. ननो अर्थ मनुष्य थाय परंतु तेनो अर्थ लोक एवो करी लोकतत्त्वनिर्णय नाम प्रयोज्युं छे ते अंगे पं. हीरालाल कापडिया जणावे छे के आ नामांतर पुष्पिकामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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