________________
__ अनुसंधान-१५ • 58 जालि मयालि वयालिअ नामा, पुरिस वारिसेण वीरा रे । ए वसुदेव-धारणी जाया, वधू पंचास तिजीया रे ॥५३॥ प्रद्युमनो हरि-रुपणि पूतो, संबो जंबूव तीनो रे। . अनिरुधो प्रद्युम्नतणो सुत, जायो वैदरभीनो रे ॥५४॥ सिवा-समुद्रविजयना पूता, सत्यनेमि द्रढनेमी रे । पंचास पंचास तिजी वधू, सीधा दीखित नेमी रे ॥५५॥ पदमावति गोरी गंधारी, सुभलक्खल(म)णा सुसीमा रे । जंबवती सत्यभामा रूपिणि, हरि-वधू आठ सुनामा रे ॥५५॥ महामति संबतणी दो धरणी, मूलसिरी मूलदत्ता रे । पवेसे वीस वरीसी दिक्खा, पाली सिवसुह-पत्ता रे ॥५६॥ आठमअंगि छठि वरगिई, महावीरजिण पा(भा)सइ रे । ऋद्ध-समृद्ध-मकाई प्रमुखा, सोल गया सिववासिई रे ॥५७॥ सेठि मकाईअ अर्जुनमाली, कमिउ कासव खेमा रे । धृति धीरो कलिसहरि वंदन, वार तिस्यूं गतपेमा रे ॥५८॥ साहु सुदंसण पूरणभद्रो, सुमणभद्र सुपतीठा रे । मेघो अतिमुत्तो अ अलक्खो, सोल अंतगडि दीठा रे ॥५९॥
गाहा जो वासुदेव पुरओ, पसंसिओ दुक्ख(क)रं करेउ त्ति । सिरिनेमिजिणवरेणं, तं ढंढणरिसिं नमसामि ॥६०॥
(१२) [ ढाल ] राग-केदार-गोडी अंतेउरी ए तेर नमो भवि, अंतेउरी ए तेर । श्रेणिकनरपति वालडी रे, मुक्या भवना फेर ।
हा रे जिण मुकी किरिआ तेर नमो रे० ॥६॥ नंदा नंदवती सती रे, नंदुत्तर मरुदेवि । सुमरुत मरुता तह सिवा रे, णंद सेणिआ सेवी ॥६॥ भद्रा सुभद्रा सुसणादेवि, देवि सुजाता वंदि । भूतदिना नमि तेरमी रे, सिद्धिगई चिर नंदि ॥६३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org