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________________ अनुसंधान-१५ • 57 नेमिनाहमि अट्ठार नमि गणहरा, प्रणमि अट्ठारसहसा य तस मुणिवरा ॥४१॥ घोरउवसग्गि जस नो वि समयावली, वाघिणी-खज्जमाणो वि जो केवली । मुणि स(सु)कोसल तहा कित्तिधरथी मली, कर्मनी रासि सुग्गिलगिरिइ सिव मली ॥४२॥ (१०) ढाल देशाख (वंदो मेरे भाइनी) नेमि समीपिइ दीख गहीनिइ, भरी आउए समरंगि रे । जे यादव सीधा सेत्तुंजिई, ते नमि आठमि अंगिइ रे ॥४३॥ अंधगविष्णि-धारणी पूता, गौतम समुद्रसागरा रे । गंभिरो थमितो अचलाभिध, अक्खोभ कंपिल नागरा रे ॥४४॥ प्रसेन विष्णु कुमारा दसए, आठ तिजी वधू कोडी रे । भिक्खु पडिमा बार वहीनिइं, जेणि भवदुखतति तोडी रे ॥४५॥ विष्णि-धारणीना आठ नंदन, अक्खोभ समुद्दसागरा रे । हिमवंतो अचलो अभिचंदो, पूरण धरणा धीवरा रे ॥४६।। आठ आठ कोडि तिजी रमणीनई, नेमिइ दीख्या दीधला रे । सोल वरीसी पाली दीख्या, सित्तुंजगिरिवरि सीधला रे ॥४७॥ सुलसा-नाग देवकी षट् सुत, अणीअजसादिक तामिला रे । कोडि बत्तीस बत्तीस तिजीनइ, रमणि बत्तीसी वामिला रे ॥४८॥ धारणि वसुदेवा गजसारण, कोडि वधू पंचासो रे । चउद पूरवी मुनिवर सीधा, तोडी भवदुख पासो रे ॥४९॥ गजसुकमाल देवकीनंदन, तिजि दिजकुमरी राजो रे । नेमि दीख एकराई पडिमा, बलीउ लिइ सिवराजो रे ॥५०॥ गाहा तं वंदे रहनेमि चउरो वच्छरसयाई जस्स गिहे । जो वरिसं छउमत्थो पंचसए केवली जो उ ॥५१॥ (११) ढाल - असाउरी (देखण दे) सुमुख दुमुख मुणि कू(रू?)प अणाढिअ, दारुक रामकुमारा रे । तिजि पंचास कोडि तिम रमणी, मुणि सीधा कृतपारा रे ॥५२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520515
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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