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________________ अनुसंधान - १५ • 30 श्रावण सिय पहु पंचमि मंदरगिरिन्हवण ॥३॥ सीय छट्टि सावण सहस समन्निय वय गहण रेवगिरिवर सामी रायमइ परिहरण । दिण चउपन्न अणंतर आसो मावसह . केवलनाणी विहरइ तणु जसु दस धणुह ||४|| जीविय वरिस सहस्सं आसाढे अट्ठमीय सिय पक्खे । संपत्तं सिद्धिसुहं उज्जिते नमह नेमिजिणं ॥५॥ ॥ इति नेमिनाथ स्तोत्रम् ॥ (५) सामि सामलय तणु कंति किरणावली जयउ विलसंत कल्लाण- घणमंडली । जयउ धरणिंद- फणि रयण रयविज्जला भविय घण मोर नच्चंति हरिसुज्जला ॥१॥ नाह मरभूइ भवि भमीय वणि गयवरो देव सहसार विज्जाहर ब्भूअ सुरो । विज्जनाहो य गेविज्ज कणयापहो चक्कवट्टी य पाणय विमाणच्चुअ ||२|| चित्त चउत्थीइ कसिणाइ वाणारसी नयरि निव आससेणस्स वामासई । पोस दसमीइ कसिणाइ जम्मुत्सवो तास इग्यारसी गिण्हए संजमो ||३|| कसिण चउत्थीइ चित्तस्स तुह केवलं सुद्ध अट्ठमहिं श्रावणह पत्तो सिवं । नाह तणुमाण नवहत्थ फणि लंबणो वरिस सउ आउ जिण नयण आणंदणो ॥४॥ जिण विघन विणासण पाव पणासण पास पसन्नउ होउ महो । पउमावइ देवी जसु पय सेवी मनवंछित सुह देउ महो ॥५॥ ॥ इति श्री पार्श्वनाथस्तोत्रम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520515
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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