________________
अनुसंधान - १५ • 29
पाणय सो अपराजीय अच्चुय इंदभव ॥१॥ विज्जाहिव गेविज्ज नरवइ मेहरह
सव्वट्ठ अवयन्नड गयउर संतियह ।
भाद्रव वदि सातमि सामि चवण तुह जिट्ट कसिण तेरसि निसि जीयउ जम्ममहो (ह) ||२|| जिट्ठ चउद्दसि बहुलीय संजम सिरि वरीय पोस सुदि नउमि दिणि केवल वरि वरीय 1 जिट्ठ कसिण तेरसि निसि कंचणकंति तणु मुक्खसुक्ख पहु पामीय छंडीय कम्मवण ॥३॥ चउसट्ठि सहस अंतेउर चुलसीय लक्खय हय-गय-रहवर छन्नवइ कोडि पायक तह य । नवनिहि चऊद रयण छ खंड सभूमिवर धम्मचक्क सोलसमु पंचम चक्कर ||४|| चालीस - धणुह - देहो लक्ख-वरिसाण जीवियं जस्स । सो संतिनाहदेवो करेइ संघस्स सिवसंती ॥५॥ ॥ इति श्री शान्तिनाथस्तोत्रम् ॥ (8)
पंचजनि आउरिय संख जिणि दिणह अज्जवि जसु पय सेवइ लंछणमिसि जिणह । रायमई मणवल्लह सोहग सुंदरह नेमिचरीय न्निज्जइ फलिणी सामलह ॥ १॥ आसि धणो तसु दइया धणवइ सुहमसुर चित्तगइ विद्याहर रयणमइ महिंदसुर । अपराजीय प्रीय प्रीयमइ पायारणह संखनिवो तसु जसुमइ प्रीय अपराजीयह ॥ २॥ नवमभवे सोरियपुरि समुदविजय घरणि सिवादेविराणी नंदण जायुकुल तसुण कन्ती किसिण दुवालसि अपराजीय चवणु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org