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________________ 85 ते वावारेऊणं असाय - उदओ महाभडो बहुसो । रयणप्पमुहपुरीसु त्तिसु आइल्लासु लोगस्स ॥ १६४॥ छेयण-भेयण-वेयरणितरण- करवत्तफालणाईणि । तह तह करावए जह सुहलवमवि लहइ न जणो सो ॥१६५॥ अन्नोन्नुद्धीरियमवि खेत्तसहावुब्भवं च दुहमसहं । पयडइ तहा जहा सो क्खणमवि न जणो सुही हवइ ॥ १६६ ॥ अग्गिमगासु पुणो तिसु दुसहाई दुहाई होंति दो चेव । जम्हा परमाहम्मिय तियसाण न अत्थि तत्थ गई || १६७॥ सत्तमपुरी पुणे जं तद्वाणकयं पि असुहमइघोरं । जं विसम - वज्ज - कंटय-मज्झे चिय तत्थ उप्पत्ती ॥१६८॥ एवं च तस्स तारिस असाय परिपीडियस्स लोगस्स । सुहवत्ता वि न वट्टइ का पुण अन्नत्थ गमणक ॥१६९॥ नरयाउवाल- विरइय आउखए होज्ज अन्नहिँगमणं । लोगस्स तस्स किं पुण असाय - सुहडा तमणुजंति ॥ १७० ॥ नरतिरिगइ-नयरीसुं दोसुं चिय निज्जइ इमो जम्हा । सिरिनामराय -सुहडेहिं तेण तत्थ वि असायाई ॥१७१॥ तिरिया उपालनिवई तत्तो तिरियगइ नियय-नयरीए । पडिबद्धेउं चोद्दससु ब्भूय - गामेसु गंतूण ॥ १७२॥ समगं असायनीयागोयासुहनामपमुह-सुहडेहिं । एगिंदियाइपाडयपुढवीकायाइगेहेसु ॥१७३॥ जे केइ संति लोया तेसिं चिंतइ भवट्ठिईकालं । काकालं पिट्ठाणं सुन्नकरणत्थं ॥१७४॥ पुढवीकाय पुरट्ठिय-जणस्स बावीसइं सहस्साइं । वासाण भवट्ठईए कालो उक्कोसओ होइ ॥ १७५॥ आउक्काए सत्त उ तिन्नि सहस्साउ वाउकायंमि । दस वाससहस्सा उण पत्तेयतरूण उक्कोसो ॥ १७६ ॥ इंदियाणि तिन्नेव एवमेसा उ । ओक्का एगिंदि भवठिई बारसवरिसाणि उ बिइंदीण ॥ १७७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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