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________________ X4 रयणप्पहनयरीए अन्नाइं वि संति अंतरपुराई । देवगइअणुगयाइं भवणाहिववणयराण ति ॥१५०॥ तीए जओ बाहल्लं जोयणलक्खं असीइसहसजुयं । हेट्ठोवरिमसहस्सं'एक्केकं पुण तहिँ मोत्तुं ।।१५१।। भवणाहिवइसुराणं अणेगभेयाइ संति भवणाई । पढमसहस्से हेट्ठिम-उवरिमगसयाइ दो मुत्तुं ॥१५२।। मज्झिमगेसु य अट्ठसु सएसु वणयरसुराण रम्माइं । तो साइं नयराइं चिटुंति अणेगरूवाइं ॥१५३।। एएसु य सव्वेसु वि होंति पओलिउ तिन्नि तिन्नेव । नवरं तइया देवाणुपुव्विनाम त्ति नायव्वा ॥१५४॥ तीए य पवेसो च्चिय मणुस्स-तिरियाणुपुव्वियाहिं पुणो । निय-निय-गईसु वच्चंतयाण निक्कासणं चेव ।।१५५॥ भवणवइ-वणयराण आउयचिंता सुराउपालेण । दोण्ह वि जहन्नओ दसवाससहस्साई विहियाइं ॥१५६।। उक्कोसेण उ भवणाहिवाण उत्तरदिसाए मेरुस्स । बलि नाम सुरिंदो जो सागरमहियं ठिई तस्स ॥१५७।। दाहिणदिसाए चमरो जो तस्स उ सागरोवमं एक्क । इयरेसिं पुण दाहिणदिसाए पलिओवमं सढें ॥१५८।। उत्तरदिसिट्टियाण उ दो देसूणाई हुंति पलियाई। भवणवईणं एवं वंतरदेवाण पुण पलियं ॥१५९॥ जेवि असायप्पमुहा सुहडा निय-निय-पिऊण वयणेण । पत्ता साहज्जकए नरयाउयपालदेवस्स ॥१६०॥ तेवि नियसत्तिसरिसं नारयगइ-लोय-भेसणट्ठाए । पवियंभिउमाढत्ता निक्करुणं जह तहा सुणह ॥१६१।। रयणप्पहा-पुरीए मज्झे भवणवइ नाम पयडेसु । देवगइ-वरपुरी-पडिबद्धेसु पुरेसु केसुं पि ॥१६२।। चारित्तमोह-नंदण कसाय-सुहडेहिं विहियपयसेवा । बहुमय मिच्छदंसण-सचिवा परमाहमिय-तियसा ॥१६३।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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