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________________ 77 इय तुह अहिलसियत्थोवसाहगाई इमाई सयलाई । मुणिऊणिमं सकज्जे तुमए वावारियव्वाइं ।।५५।। किं च इमाणं नवहा हासाई सहयरा महासुहडा । तिव्वासत्तियरे वि हु लोय-वसीयरण-सत्तिजुया ।।५६।। तिय इह मोह-वावरिएहि वावारिय च्चिय हवंति । इय सव्वे चिय एए गुरुसंमाणेण दट्ठव्वा ।।५।। जो उ महामंडलिओ आउयराओ कओऽम्ह जणएण । सो सच्चविउं असंववहारपुरे बहुजणं अम्ह ।।५८।। निय-पुर-नयणिच्छाए बहुयरमाउट्टिइं न वियरेइ । अंतमुहुत्ताओ उण संहारं कुणइ पुणरुत्तं ॥५९।। जइ वि हु तह वि मए निय उदएणऽन्नत्थ निज्जमाणो सो । तत्थ वि धरिज्जए पुण पुणरवि कारविय उप्पत्तिं ।।६०॥ न य एवं कीरंते मए समुव्वहइ वइरभावं सो । केवलमणंतलोयं इच्छइ काउं सनयरीसु ॥६१॥ न य एत्तिएण अम्ह वि तस्सुवरि समत्थि कावि वइरमई ॥ जम्हा तन्नयरीसु वि आणाकारी जणो अम्ह ॥६२॥ अन्नं च - पावमइ महामाया मज्झिमगुण-जोग्गया सुहपवत्ती । आउ-निवस्स पियाओ चउरो चत्तारि तासिं सुया ॥६३॥ नरयाऊ तिरियाऊ मणुयाउ सुराउणो त्ति जहसंखं । एए कया सपिउणो रायाणो नियय-नयरोतु ॥६४॥ एएसु य नरयाऊ मिच्छादसंणअमच्चत्रसवत्ती। कत्थ वि ढिइं न बंधइ तव्विरहे जमिह कइया वि ॥६५॥ जे वि हु जलणाइ महासुहडा चारित्तमोह-अंगुहा । तेहिं वि समं सिणेहो इमस्स इय भे सहाओ सो ॥६६।। जो उण तिरियाउ महानराहिवो सो वि इह सहावेण । बहु मिच्छत्तणुजाई कया वि सासायणरुई वि ॥६७।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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