________________
41
अब्भ-वज्जिय-गयणि रवि-किरण-नियरो व्व परिभासुरइ विप्फुरंत-तणु-किरण-रइयह नह-विवर-परिसकिरह तिमिर-नियर-महि-वलय-मइयह पसरंतह भामंडलह वीरह निरुवम साहेज्ज जिणसेवहिं पट्ठविउ दिणयरि नियकिरणोहु ॥६॥ पउर पडिरव भरिय नह विवर बहिरीकय-जण-सवण गुरु चमक्क-उक्कन्न-वयणेहि आयन्निय-पसुगणेहि कंपमाण-तणु तरल-नयणेहि सुरदुंदुहि वज्जंत तहिं गुरु निग्घोस महंत हक्कारइ जिण पासि किर सुर-नर दूरि चरंत ॥७॥ थूल-नितूल-विमल-विललुंत मुत्तावलि मालियह सरय-सोम-मंडल-खत्रह मणि-खंड-परिमंडियह हरतु सारगिरी-सरिस-वन्नह तिहुयण पहु छत्तत्तयहं सोहइ उज्जलकति नं सुरसिंधु-पवाहु नियफेणहं संठियपंति ॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org