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________________ (वस्तुछंद) तुं वट्टल मसि थुड-नालु वेरुलिय - समु बहल - दलु घणु विसालु सम-साल-सालिउ । मयरंद-लालस-भसल - पिज्जमाणकुसुमोह मालिकउ पवणंदोल- पवाल- करु हरिसिं नच्चइ नाइ वीरह उवरि असोयतरु रविकरपहहरु भाइ ॥ १ ॥ विट- संठिय- सुरहि-गंधड्ढ 40 जलथल-यरु संभवह पंचवन्न- सुरगण-विमुक्किय आजाणु उस्सेह तर्हि, गंध - लुध्ध - भमरहं अचुक्किय सहइ समंता जिणवरह वियसिय कुसुमह वुट्ठि | जिण - दंसणि उप्फुल्ल- मुह नाइ पयास तुट्ठि ॥२॥ हरिस - वियासिय- वयण - णयणेहिं हरिणेहिं सुय अइ रसिण विजिय- सजल - जलवाह - गज्जिय अन्नाण- तिमिरंतरिय - भुवण-भाव- पायडण सज्जिय जिण - झुणि पसरइ दस दिसिहिं तिहुअण-जणिय पणाम नं गुरुतम- निद्दोवहय जण पहिबोहण काम ||३|| खीरसायर-लहरि - डिंडीर - पंडुरयरु सरय-ससि-किरण- सरिस - चिहुरोह- सुंदर । माणिक्क- मांडिय-पवर - कणय-डंडु रंजिय- पुरंदरु सुरवइ-कर-कमलट्ठिय चामर जुयलु ढलेइ नावइ गुणगणु मुइय- मणु पुणु पुणु जिणह न मेइ || ४ || जच्च - कंचन घडिउ मणिचित्तु Jain Education International उत्तुंगु वित्थर पवरुनमिय मज्झ पेरंत उध्धरु बहुचित्त - विछुरिय-तणु पडिम- रुववर-सीह - सिंधुरु सीहास तिहुयण - गुरुहु सोहइ निरुवमकंति नं रूवंतरि मेरुगिरि, धारइ तणु गुरुभत्ति ॥५॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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