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________________ मुनि विनयवर्धनलिखित एक विज्ञप्तिपत्र - मुनि रत्नकीर्तिविजन ओळी स्वरूपे प्राप्त थयेल हस्तलिखित पत्रमा आ विज्ञप्तिका छे. ४८ श्लोट प्रमाण आ विज्ञप्तिपत्रना आगला भागमा ३८ श्लोक छे. अने बाकीना श्लोको पाछळभागमां छे. तपगच्छीय आचार्य श्रीविजयसिंहसूरि महाराजने तेमना श्रीविनयवर्धन नाम शिष्ये लखेलो आ विज्ञप्तिपत्र छे. गुरुभगवंत मेडतामां बिराजमान छे अने पोते थरादर चातुर्मास रह्या छे. जिनेश्वरनां चैत्य, जिन प्रतिमा, नगर वगेरेनुं वर्णन तथा चातुर्मा दरम्यान पोते करेला स्वाध्याय वगेरेनी वात तथा पर्युषणा पर्वमां थयेल आराधनादि वात आमां करेली छे. एकाक्षरवृद्धिए छन्दोबद्ध अने काव्यमय विज्ञप्ति, लेखकनी संस्कृत साहित तथा काव्य अलंकारादि विशेनी विद्वत्तानी द्योतक बने छे. एक-बे-त्रण एम वर्धमानाक्ष लखाएला श्लोकोमां लगभग प्रत्येक अक्षरना बे बे श्लोको छे. श्लोक ४३मा ४ अक्षर जेटली जग्या छोडी देवामां आवी छे अने क्यां क्यांक अशुद्धि होवाने लीधे मूळ विज्ञप्तिपत्रनी नकल होवानु जणाय छे. घणा शब् उपर अर्थनी स्पष्टता हेतु तेनो पर्याय शब्द मूकेलो छे. जे अत्रे टिप्पणमां आपेल छे. वर छंदःशास्त्रना ग्रंथमाथी छंदो मेळववानो प्रयत्न कर्यो छे. ते पण टिप्पणरूपे आपेल : तेमां श्लोक १२, १३, १४, १७, २९, ३६, ४३, ४४, अने ४६ आटलाना छंदो प्राप्त १ शक्या नथी । 'छंदोनां नाम श्लोकमां ज होवा जोईए' एवो पूज्य श्रीशीलचन्द्रस् महाराजनो निर्देश एमना कह्या अनुसार छंदनी शोध करता करता वास्तविक पुरवार थ एटले जे छंदो हुँ मेळवी न शक्यो ते पण ते श्लोकोमा हशे ज एवी संभावना छे ते आ विषयना विद्वज्जनोने जणाववा विनंति करुं छु. विज्ञप्तिपत्रमा छेल्ले 'सं १७०१ वर्षे' एवो उल्लेख छे. जे लेखनकाल जण के. एटले विज्ञप्तिपत्र ते पहेला लखायो होय तेम शक्यता छे. विज्ञप्तिपत्रमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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