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________________ उत्तर गुजरातनी बोलीमां वपराता केटलाक शब्दो - डॉ. रमेश आ. ओझा आथर उत्तर गुजरातमां गधेडा पर जे गोदडी डळी साथे गोठवीने पराठ वडे बांधवामा आवे छे ते गोदडीने 'आथर' कहे छे. जो.को.मां आथरना अर्थ आ प्रमाणे आपेला छे ..... "घासनो थर (2) पछेडी; पाथरपुं, मोद (3) गधेडा उपर नाखवानी डळी ०ण न. चादर, ओछाड (4) पथारी, बिस्तरो." बृ.गु.को.मां आथरना अर्थ आ प्रमाणे आपेला छे ...... "पुं. [सं. आ-स्तर -> प्रा. अत्थर] नीचे पाथरवानुं जाडु पाथरj (2) गधेडा उपर नाखवानी डळी (3) बूंगण, मोद (4) अनाजनी खाणमां अनाज बगडी न जाय ए माटे एनी बाजरानी के बीजी कडबना पूळानो करवामां आवतो थर." टर्नर क्रमांक 1505 सं. आस्तर (astara) आस्तरण तकियो, पथारी प्रा. अत्थरय ओढणुं शब्दो नोंधे छे. क्रमांक 1507 आस्तरति 'आथरतुं', 'पाथरे छे' नोंधे छे. क्रमांक 1506 मां आस्तरण - मरणकाळे घासनी पथारी उपर जे मरवानो छे तेथे मूकवामां आवे छे ते - शब्दनी नोंध छे. जैनोमां तेने 'संथारो' कहे छे. टर्नर की १३०४२मां नोंधे छे : samstaram layer of grass or leaves, bed, conch." आथर भरवो इंटो पकवती वेळा बळतण तरीके कोलसो, कोलसी, लाकडां वरियाळी-कपासन डांखळीनो थर करवामां आवे, एवा पर इंटो खडकवामां आवे एने आथर भरवों थर भरवो कहे छे. बृ.गु.को. आथरो शब्द नोंधे छे. आथरो पुं...... "आच + गु 'ओ' स्वार्थे त. प्र. वासण पकववा माटे बनावेलो कांटा के कूचानो थर.* Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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