________________
१५४
१५५
१५७
॥६७॥
॥६८॥
१६०
॥६९॥
॥७०॥
॥७
॥
पंचसु ठाणे बीयं
समरसभावेण भाविओ नूणं । दूरट्ठिउँ(ओ) विआणइ जोयणसयसंठिओं नारी थंभइ लयारबीयं मायाबीयं च कुणइ आइट्ठी। दावइ एव लपिंडे पंचसु ठाणेसुमब्भसिओ छट्ठसरेण व सुन्नं सविसग्गं बिंदुनायसोहिल्लं। ज्झाइज्झइ भूमज्झे नाणाविह कुणइ सामत्थं दह अट्ठलिहिय सुन्नं पच्छिमबीयस्स फुसए नूणं । हरहसियफुक्कियाए हरइ विसं कालदट्ठस्स बीयमबीयं तिउणं मज्झगयं-जस्स नाम संपुन्नं ।। मयभिभलउम्मत्ता आणइ दूरट्ठिया नारी अक्केण खुद्दकम्मं [सुहकम्मं] कुणह-रयणिनाहेण । तत्तविसेसेण फुडं साहइ मणवंछियं सयलं पुहइ-जल-तेय-वाया सुन्नं एक्केक्कनाडिमज्झम्मि। नियनियसहावसहलं जाणिज्जइ सयलचिंताओ मज्झेण वहइ पुहइ जलणं अहमग्गसंठियं वहइ। उद्धेण वहइ तेॐ तिज्जगओ वहइ सम्मीरो सुन्नं सुन्नसहावं पंचसु तत्तेसु संठियं वहइ। अक्कमयंकेसु तहा नहतत्तं सव्वगं जाण पुहई-जलेण लाहो हाणी-महणं च तेय-पवणेण । सुन्नेण होइ सुन्नं जं सयलं चिंतियं कज्जं पुहइपहावे सूलं जीयं जल-मारुयाण चिंताए। तेयपवाहे धाउं सुन्ने सुन्नं वियाणेह
॥७२॥
१६८
॥७३॥
॥७४||
॥७५॥
१७७
||७६॥
॥७७॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org