SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 37 अतः परं पैशाचिकं भविष्यति ॥ २३२ ॥ नमः पावय | पैशाच्यां द-ण हीनत्वात् षोडशानामशं ( सं ? ) चरः || अ आ इ ई उ ऊ ए ओ । क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ त थ दूध न प फ ब भ म य र ल व सह अं ||२३३|| सर्वोदाहरणस्य - कम्मानं घन गंठि कट्टन कलावूढो कुठारव्व जो सज्झायस्स खने थुवंति मुनिनो पुच्छा ( ? ) पतीपो त्ति जं । जो पासंडिक - भिप्फ-वात- विजयी सो बंभचेरूद्धरं मग्गं पास [प] हू पयच्छतु सता लोगग्गचूजामनी ||२३४|| त्रपदे त्र - ञकाराते द्वित्व - षड्विंशतिर्भवेत् ॥ क्क क्ख ग्गग्घ च्च च्छ ज्ज ज्झ ञ्ञ दृट्ठड्ड ड्ढ त्त त्थ द्ध न्न प्प प्फ ब्ब ब्भ म्म य्य ल्ल व्व स्स ॥ पञ्ञा । पठिय्यते । इत्यादि । चंत्रं ॥ उचितशेषास्तु - ङ्कङ्ख ङ्गङ्घ च्म ञ्च ञ्छ ञ्ज ञ्झ ण्ट ण्ठ ण्ड ण्ढ न्त न्थ न्द न्ध म्प म्फ म्ब म्भ म्व म्ह यह ल्ह ल्ह( ? ) || पङ्के इत्यादि ॥ २३५|| तृतीय- तुर्यान्नैवाख्यु-श्चूलापैशाचिके पुनः ॥ अ आ इ ई उ ऊ ए ओ । क ख च छ ट ठ त थ न प फ म य र लव सह अं ॥२३६॥ सर्वोदाहरणस्य - मोहं फेटति चो कसाय कटनो तूरो कुनप्पा चयी सक्के पूचति चस्स पुव्वपटिमं तेवाथिरा चो मुता । चो काठं परतुक्ख- फंचि - फकवं वानी - सुथा- निच्छरो सामी अतिजिनेसलो तिसतु मे थम्मोतयं मंकलं ॥ परेषां प्रणिषिध्यते नादियुज्योरमी अपि ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy