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अतः परं पैशाचिकं भविष्यति ॥ २३२ ॥ नमः पावय |
पैशाच्यां द-ण हीनत्वात् षोडशानामशं ( सं ? ) चरः
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अ आ इ ई उ ऊ ए ओ । क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ त थ दूध न प फ ब भ म य र ल व सह अं ||२३३||
सर्वोदाहरणस्य -
कम्मानं घन गंठि कट्टन कलावूढो कुठारव्व जो
सज्झायस्स खने थुवंति मुनिनो पुच्छा ( ? ) पतीपो त्ति जं । जो पासंडिक - भिप्फ-वात- विजयी सो बंभचेरूद्धरं
मग्गं पास [प] हू पयच्छतु सता लोगग्गचूजामनी ||२३४|| त्रपदे त्र - ञकाराते द्वित्व - षड्विंशतिर्भवेत् ॥
क्क क्ख ग्गग्घ च्च च्छ ज्ज ज्झ ञ्ञ दृट्ठड्ड ड्ढ त्त त्थ द्ध न्न प्प प्फ ब्ब ब्भ म्म य्य ल्ल व्व स्स ॥
पञ्ञा । पठिय्यते । इत्यादि । चंत्रं ॥
उचितशेषास्तु - ङ्कङ्ख ङ्गङ्घ च्म ञ्च ञ्छ ञ्ज ञ्झ ण्ट ण्ठ ण्ड ण्ढ न्त न्थ न्द न्ध म्प म्फ म्ब म्भ म्व म्ह यह ल्ह ल्ह( ? ) || पङ्के इत्यादि ॥ २३५||
तृतीय- तुर्यान्नैवाख्यु-श्चूलापैशाचिके पुनः ॥
अ आ इ ई उ ऊ ए ओ । क ख च छ ट ठ त थ न प फ म य र लव सह अं ॥२३६॥
सर्वोदाहरणस्य -
मोहं फेटति चो कसाय कटनो तूरो कुनप्पा चयी सक्के पूचति चस्स पुव्वपटिमं तेवाथिरा चो मुता । चो काठं परतुक्ख- फंचि - फकवं वानी - सुथा- निच्छरो सामी अतिजिनेसलो तिसतु मे थम्मोतयं मंकलं ॥
परेषां प्रणिषिध्यते नादियुज्योरमी अपि ॥
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