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स्वरोष्मका विवृताः। अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ । श ष स ह ॥१५५।। विवृततरावेदोतौ।
ए ओ ॥१५६।। विवृततमा ऐ च औ च ॥१५७॥ विवृते जायते श्वासः ॥१५८।। संवृते नाद एव च ॥१५९॥ एतावनुप्रदानत्वे सद्भिः कैश्चिदगीयेताम् ।
"श्वास-नादावनुप्रदाने" इति केचित् ॥१६०।। अनु-प्रदीयते नाद-स्तथाभूते यदा ध्वनौ । घोषता भवति (१६१), श्वासानुप्रदाने त्वघोषता ॥१६२।। प्रथमे श-ष-साश्चैव - ईषच् श्वासतया स्थिताः । __ क च ट त प, श ष स ॥१६३।। द्वितीयाः स्युर्बहुश्वासाः ; ख छ ठ थ फ ||१६४||
___ अघोषास्ते त्रयोदश ॥ क ख च छ ट ठ त थ प फ श ष स ॥१६५।। महाघोषाश्चतुर्थाः स्युः पञ्चमान्तस्थमेव हः । - घ ङ झ )ञ ढ ण ध न भ म य र ल व ह ॥१६६।। स्वल्पघोषास्तृतीयास्तु , ग ज ड द ब ॥१६७॥
ख्यातो घोषवतां गणः ।। ग घ ङ ज झ ञ ड ढ ण द ध न ब भ म य र ल व ह ॥१६८॥ अल्पप्राणत्वमेतेषा-मल्पे मरुति निश्चितम् ।।
क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व ॥१६९।।
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