SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चसूत्रना कर्ता कोण, चिरन्तनाचार्य के आ. हरिभद्र ? - विजयशीलचन्द्रसूरि पञ्चसूत्र ए जैन साधुओमां सैकाओथी अत्यंत आदर प्राप्त करनारो ग्रंथ छे. आत्माना ऊर्ध्वकरणनी अने चित्तशुद्धिनी, एमां रजू थयेली तात्त्विक / आध्यात्मिक, अनुभूत अने व्यवस्थित प्रक्रियाने कारणे, प्राकृत भाषामां ट्रंकां वाक्यो द्वारा निखरती रमणीयता धरावतो आ ग्रंथ, कदमां नानो होवा छतां तेनी लोकप्रियता बहु मोटी छे. आ लघु ग्रंथ उपर श्रीहरिभद्रसूरि महाराजे नानी पण सरस अने सरळ वृत्ति रची छे. जेनां विविध संस्करणो प्रसिद्ध थयां छे, अने तेनुं संशोधित संस्करण, ' दिल्हीथी प्रगट थयुं छे. चित्तशोधन अने आत्मसाधनाना मार्गना साधको माटे कायम आकर्षणनुं केन्द्र बनी रहेनार आ पंचसूत्र परत्वे विचित्र बाबत ए छे के तेना कर्ता कोण ए अद्यावधि अज्ञात ज रह्युं छे. तेना कर्ता अंगे कोइए विशेष लक्ष्य आपीने संशोधनना दृष्टिबिंदुथी विचारणा पण करी नथी; बल्के परंपराथी चाली आवती 'आ कृति चिरंतनाचार्ये रची छे' तेवी वातने ज प्रामाणभूत हकीकत सौए मानी लीधी छे. जो के 'चिरन्तनाचार्य' शब्दना अर्थमां बे अभिप्रायो पड्या छे : १. चिरन्तन एटले प्राचीन आचार्यनी रचना अने २. 'चिरन्तन'' नामना कोइ आचार्यविशेषनी रचना. परंतु आ बेमां प्रथम अर्थघटनने ज सार्वत्रिक स्वीकृति मळी छे. आ ग्रंथना कर्तृत्व विशे बहु थोडो ऊहापोह थयो छे खरो, पण तेमां दरेक ऊहापोह करनार, छेवटे, 'आ अज्ञातकर्तृक छे' तेवा निष्कर्ष पर आवीने अटकी गया छे. आपणे ते दरेक अभिप्रायो, शरूआतमां ज, जोवा जोईए. - (१) प्रो. वी. एम. शाह, तेमणे करेला पञ्चसूत्र ना संपादननी भूमिकामां वातो / कल्पनाओ आ प्रमाणे निर्देशे छे : 1. It is composed according to him by चिरन्तनाचार्य - meaning ancient preceptors or preceptor with the name fa. The first meaning is more likely. It is difficult to assign individual authorship to books like this. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520511
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy