SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 29 अङ्गुलिदलाभिरामं० - - - - - वगेरे प्रथम पद्यमां सांग रूपक छे. भगवानना चरणरूपी कमळ अंगुलिरूपी पांखडीओथी सुंदर छे अने सुरनरना समूहरूपी भ्रमरोथी युक्त छे. (शब्दार्थ - देवताओ (रूपी भ्रमरो) चरणवंदना करे छे) संसारना भय, हरण करनार छे. आवां श्रीचरणोने कवि नमन करे छे. अहीं प्रथम त्रण चरणमां 'चरणकमळ' ए रूपकने अंगरूप अंगुलिरूपी पांखडीओ एम कही पूर्ण रूपक रच्युं छे. वळी सामान्य कमळ संसारना भय, हरण करी शकतुं नथी, ज्यारे भगवाननां चरणकमळ विशिष्ट छे कारण के एनो आश्रय लेवाथी घोर संसारनो भय टळे छे. अहीं व्यतिरेकने व्यंजित थयेलो अनुभवी शकाय छे. द्वितीय पद्यमां पण रूपक छे अने जिनेश्वरने संबोधनो छे. जेम के, कामनाओरूपी हाथीना कुंभस्थळनुं विदारण करनार, भवरूपी दवाग्निने माटे मेघ, विमलगुणना धामरूप वगेरे. कामनाओरूपी हाथीना कुंभस्थळनुं विदारण करनार एमां 'सिंह' रूप उपमान गम्य छे. अंते अशोकनां पांदडा जेवा (रक्त) वर्णना हाथ अने चरणवाळा – एमां उपमा छे. आम उपमा अने रूपकनी मनोहर संसृष्टि रचाइ छे. तृतीय पद्यमां पुनः संबोधनो छे अने तेमां मनोरम रूपक अलंकारनी रचना कविए करी छे, जे निर्वेद अने शम, दम वगेरे भावोने पुरस्कृत करे छे. मायारूपी धूळने माटे पवनरूप, भव-संसाररूपी वृक्षने माटे हाथीरूप, मरण तथा जरारूपी रोगर्नु निवारण करनार तथा मोहरूपी महामल्लना बळy हरण करनारा – एमां मरण अने जरारूपी रोगर्नु हरण करनार वैद्य - एम वैद्य उपमान गम्य छे. वळी अहीं एक जिनेश्वरनुं अनेकरूपे ग्रहण थयुं छे (अलबत्त रूपकनी सहायथी) एटले उल्लेखालंकार पण गम्य छे. भावोरूपी शत्रुना रूपमा रहेला हरणने माटे श्रेष्ठ सिंहरूप, संसाररूपी महान समुद्रने तरवा माटे नौकारूप, दोषोथी भरेला अंधकारने त्रास पमाडनार सूर्यमंडल जेवा, गुणोना समूहरूप (गुणरूपी) मणिना करंडिया - आ रीते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520511
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy