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मध्यकालीन धर्म विषयक पद्यपरंपरा संगोष्ठी अहेवाल
श्री भद्रंकरोदय शिक्षण द्रस्ट, गोधराना उपक्रमे ता. ५/६ ओक्टोबर १९९७ना दिवसोमां, श्री यशोभद्र शुभंकर ज्ञानशाळा, महावीर जैन सोसायटी, गोधरामां पूज्य आचार्यश्री विजयशीलचंद्रसूरिजी महाराजनी निश्रामां 'मध्यकालीन धर्मविषय पद्यपरंपरा'ए विषय पर एक अपूर्व संगोष्ठी योजाई गई. यजमान श्रेष्ठी श्री जयंतिभाई कानजीभाई शेठनी साहित्यप्रीतिना बळे सर्वश्री जयंत कोठारी, लाभशंकर पुरोहित, शिरीष पंचाल, रमण सोनी वगेरे आयोजकोना श्रमनां सुफलो मुंबई, सौराष्ट्र अने गुजरातना विविध स्थळोएथी आवेल आमंत्रित श्रोताओए तथा नगरना साहित्य रसिको अने श्रावको चाख्यां.
संगोष्ठीनी अने पहेला दिवसनी प्रथम बेठक संगोष्ठीसंचालक श्री लाभशंकर पुरोहिते करेली श्रीशत्रुंजयवंदना, तीर्थंकरवंदना, शारदावंदनाथी शरू थई. गोधराना जैन बाळतपस्वी रुचिर मूकेशभाई चोकसीए मंगलदीप प्रगटावी संगोष्ठीनुं विधिवत् उद्घाटन कर्तुं हतुं. आचार्य श्री विजयशीलचंद्रसूरिजीना मंगलाचरण पछी संगोष्ठीमां पधारेला श्रोतावक्ताओनं हार्दिक स्वागत प्रा. विनोद गांधी कर्यं हतुं. प्रा. विनोद गांधीए उचित रीते गोधरामा जन्मेल पू. रंगअवधूत महाराज अने कविश्री पूजालाल दलवाडीने याद कर्या हता. 'भीनी क्षणोनो वैभव' अने 'अमारी घोषणानो दस्तावेज'ना सर्जक पूज्य आचार्य श्री विजयशीलचंद्रसूरिजीना चातुर्मासथी गोधरानी धरा धन्य बनी छे, एवं संवेदन व्यक्त करतां स्वागतकारे डॉ. सितांशु यशश्चन्द्र, डॉ. गुणवंत शाह, श्री गुलाबदास ब्रोकर आदि शुभेच्छकोना संदेशाओ बदल तेओ सहुनो आभार मान्यो हतो. प्रथम बेठकना प्रास्ताविक वक्तव्यमां संयोजक श्री शिरीष पंचाले संगोष्ठीनो हेतु स्पष्ट कर्यो हतो. श्रीपंचाले गये वर्षे वडोदरा मुकामे मध्यकालीन साहित्य विशे ज थयेल संगोष्ठीनी पूर्तिरूपे आ संगोष्ठी योजाई होवानुं जणाव्युं हतुं. वळी मध्यकालीन पद्य परंपरानो परिचय हवे पछीनी पेढीने थतो रहे ए माटे कशाये रागद्वेष विना अनेक संप्रदायोना समृद्ध सारतत्त्वने झीली लई, एने मुद्रित / ध्वनिमुद्रित स्वरूपे साचवी राखवा जणाव्यं हतुं. १. प्रत्येक संप्रदायनी दार्शनिक सैद्धांतिक वात, २. ते ते संप्रदायनी क्रियाओ विधिओ-अनुष्ठानोनी
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