SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 104 श्वारोच्छवासनी क्रिया थाय छे ते श्वासोच्छवास पर्याप्ति , जे शक्तिथी भाषा नो व्यवहार थाय छे ते भाषा पर्याप्ति , अने जे शक्तिथी मननो व्यापार थाय छे तेने मनः पर्याप्ति कहेवामां आवे छे. एकेन्द्रिय एवा स्थावर जीवोमां प्रारंभनी चार पर्याप्तिओ - अर्थात् आहार, शरीर, इन्द्रिय अने श्वासोच्छवास पर्याप्तिओ होय छे. द्वीन्द्रिय थी चतुरिन्द्रिय जीवोमां मनने बाद करतां बाकीनी पांच पर्याप्तिओ होय छे. पंचेन्द्रिय जीवोमां संज्ञी अने असंज्ञी एवा बे प्रकार छे.. जेमने मन नथी होतुं तेवा पंचेन्द्रिय जीवो असंज्ञी गणाय छे अने तेमने मन सिवायनी उपरनी पांच पर्याप्तिओ होय छे, ज्यारे संज्ञी जीवोने उपर जणावेली छ पर्याप्तिओ होय छे.६ (२) मोक्षमार्गी आचारव्यवस्था आ जीवविचारणाने लक्षमा राखीने मनुष्यने कर्मोना बंधनमांथी छोडावी मोक्षमार्गे वाळवा तथा अंते निर्वाण प्राप्ति कराववा माटे जैन तीर्थंकरोए एक विशिष्ट आध्यात्मिक मार्ग प्रवर्ताव्यो जेने आपणे 'जैनधर्म' तरीके ओळखीए छीए. कर्मबंधनोने लीधे ज जीव जन्ममरणनी घटमाळमां फसायेलो रहे छे. अने कर्यबंधनमांथी छूटवा माटे जीवे कषायोमांथी मुक्त करवा घोर तपश्चर्या जरूरी छे. आ तपश्चर्याना मार्गे जीवने क्रमशः वधुने वधु तीव्रतानी कक्षाए प्रवृत्त करवा गृहस्थधर्मनां बारवतो अने साधुधर्मनां पांच महाव्रतो- पालन करवानी व्यवस्था गोठववामां आवी छे. गृहस्थ माटेनां बार व्रतोमांना प्रथम पांच 'अणुव्रत' अथवा सूक्ष्म कहेवाय छे, कारण के ते साधुओनां पांच महाव्रतोनी तुलनाए घणां अल्प अथवा स्थूळ छे. गृहस्थोनां आ अणुव्रतो छ :- स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत, स्थूल मृषावाद विरमण व्रत, स्थूल अदत्तादान विरमण व्रत, स्थूल मैथुन विरमण व्रत अने स्थूल परिग्रह विरमण व्रत ; ज्यारे साधुओनां पांच महाव्रतो छ :- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अने अपरिग्रह. आ पांच महाव्रतो अने गृहस्थ माटेनां थोडीक अनिवार्य छूटछाटवाळां आ ज महाव्रतोनां पांच अणुव्रतो जैन धर्मना प्राणरूप छे. आ पांच महाव्रतोना ६. एजन, पृ. ७९-८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520511
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy