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[ 'प्रभाकचरित' मां (५३, क्रमांक ५७२), तथा 'प्रबंधकोश' मां (पृ. ३९) मां चोथा चरणनुं पाठांतर छे : 'पूर्व - स्मर्तुरवंतु कोप- कुटिला भ्रूभंगुरा दृष्टयः ॥ ' ]
सूरदासने नामे मळता नीचेना पदमां उपर्युक्त मुक्तकनो आधार लेवायो
छे :
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'नंदनंदन ! एक कहुं कहानी
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रामचंद्र राजा दशरथ के, जनक- सुता जाके घर रानी तात- वचन सुन पंचवटी - वन, छांड चले ऐसी रजधानी तहां बसत सीता हर लीनी, रजनीचर अभिमानी - २ पहली कथा पुरातन सुन सुन, जननी के मुख - बानी 'लक्ष्मण ! धनुष धनुष' कहे टेरत - जसुमति सूर डरानी
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