SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 80 इंद्रभूति आव्य[गह] गहितु । जिनवर महिमाने अणसहितु । नाम लाधइ चितवन कीउए । नाम गोत्र मझ सहुय वखाणइ । मन .. संधे जु माहरु जाणइ । तु हु एणि वसि कीउए ॥ १६ ॥ . वेदपदि जिन संधे टालइ । लि दिक्षा सई पाचसिउं पालइ । अमरख बीजु मनि करइ । आविउ तव टलिउ संदेह । अनुक्रमि त्रीजु चुथु जेह । संघे रहित संयमधरए ॥ १७ ।। च्यारसुए पाते संयम वरीया । सोहम्म माहण कोपि भरीया । आवइ वेगि समोसरणि । कोडि गमे ते देवा देखइ । रिद्धि [सिद्धि] पेखइ ण लेखइ । कुसुमवृष्टि देखइ धरणि ।। १८ ॥ वीर सुधर्म कहीय बोलावइ । अगनिवेसायण गोत्र मलावइ । किम मुनिधरो (?) अथवा माहरु नाम विक्षात । सहु को जाणइ मह अवदात । मन चिंतन कहि मुनिपवरो ॥१९ ॥ तुं जाणइं आणइ भवि जेह । परभवि तेहवु हुसिइ तेह । इहां नर ते नर हसिइ । नारी हसिइ ते नारी था जासि । पशुय पुशयपणइ पणि जासि । नहि तु जारि जारि कसिइं ॥ २० ॥ वेद पदनुं अर्थ विचारि । ताहरु संधे तुंह निवारइ । एकइ जनिर्मि वय फरइ । नर मरीनई देवइ थावइ । देव चवीनइं नरभवि आवइ । कर्म विचित्री इम करि ।। २१ ॥ नहीं तु दया दान कां दीजइ । तपिं करी तनुं कां सोसीजइ । संधेरहित साहम्म हवा । मन वात ते मुनिपति भासी । सात धात ते धम्मिवासी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520509
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy