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ओरिएन्टल-कॉन्फरन्स ३८९ संमेलन
जादवपुर युनि.ना यजमानपदे, ओल--इन्डिया ओरिएन्टल कॉन्फरन्सनुं ३८मुं अधिवेशन ता.२८थी ३० जान्यु. '९७ना दिवसोमां योजाई गयु. जान्यु ३ थी ९ दरम्यान बेन्गलोरमां योजाएला वर्ल्ड संस्कृत कोन्फरन्स पछी तरत ज आ संमेलन योजानु होवाथी विद्वानोनी हाजरी प्रमाणमां पांखी हती ।
वैदिकथी मांडीने ईरानीअन, इस्लामीक, द्राविडी, पालि अने बुद्धिज़म तेम ज प्राकृत अने जैनिज़म अने मोडर्न संस्कृत जेवा विषयोनो आ संमेलनमां समावेश थयो हतो, अने सर्व विभागनी बेठको समांतर ज योजवामां आवेली (तो ज समेलन त्रण दिवसमां पूरुं थाय). आ संमेलन जादवपुर, बंगाळमां योजायु होवाथी बंगाळी भाषा-साहित्यनो एक वधारानो अढारमो विभाग पण राखवामां आवेलो।
हमेश मुजब विद्वानोमां सौथी वधु लोकप्रिय विभाग क्लासीकल संस्कृत रह्यो, जेमां कुल १७८ शोधपत्रो प्रस्तुत थयां. प्राकृत जैनिज़म अने पालीबुद्धिज़ममां अनुक्रमे ४१ अने २५ शोधपत्रो प्रस्तुत थयां ।
प्राकृत विभागमां सट्टक नाट्यप्रकार पर बे शोधपत्रोमांथी एकमां पूणेना डॉ.चन्द्रमौली नैकरे भाषाकीय विशेषताओ अने प्रादेशिक भाषानी असरो ('कर्पूरमंजरी'मांथी उदाहरण रूपे 'सीसे सप्पो, देसंतरे वेज्जो' जेवी कहेवतोअहीं 'हिमवति दिव्यौषधयः, शीर्षे सर्पः समाविष्टः' ए 'मुद्राराक्षस'मांनी उक्ति याद आवे)नुं निरूपण कर्यु. तो बीजा एक शोधपत्रमा स्वरूप, समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत थयु. 'करकण्डुचरिउ', 'समराइच्च-कहा', 'जसहरचरिउ', 'णायकुमार-चरिउ', 'गाथासप्तशती', जैन आगम अने गीता, 'आचारांग', 'वसुदेवहिण्डी' (मां नैतिक तत्त्व) जेवा विषयो पर शोधपत्रो प्रस्तुत थयां ।
पाली-बुद्धिज़म विभागमां तिब्बतमां प्राप्य 'लोकेश्वर शतक-स्तोत्र' (संस्कृतमा अनुपलब्ध), तिब्बतमां प्राप्त अभिधर्म-पाठ, दीघ-निकायना महासमय
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