________________
101 भूपेन्द्रभाई त्रिवेदीनो अभ्यासपूर्ण लेख अने छेक वेदकाळथी चालती आवती पूजाविधि, तेना प्रकारो विशे सारो एवो प्रकाश पाडे छे. कवि वीरविजयकृत 'नेम-राजुल बासमासा' विषयक निबंधमां श्री रमण सोनीए लाघवथी कृतिनिष्ठ चर्चा करी छे. 'पंडित श्रीवीरविजयजीरचित मोतीशाह शेठ विशे ढाळियां' निबंधमां श्री रमणलाल ची. शाहे, शेठ मोतीशाहे पालिताणामां शत्रुजय पर्वत पर बंधावेली टुंक अंगे पंडित श्रीवीरविजयजीए लखेल 'कुंतासरनी प्रतिष्ठाना ढाळियां' रचनाने जैतिहासिक दस्तावेजनी गरज सारती कृति गणावी छे.
'काव्यरूपना विविध ताणावाणा' लेखमां श्रीजयंत कोठारीए 'वयरस्वामीनी गहुँली'ना अर्थघटनना प्रश्नो छेड्यो छे. लेखक कहे छे के कृतिमां अवळवाणी आलेखाई छे जेनी पंरपरा घणी जूनी छे.
पूज्य आचार्य श्रीविजयप्रद्युम्नसूरिजी अने प्रा. जयंतभाई कोठारीना चीवटपूर्वकना मार्गदर्शन-परामर्शनने लीधे संपादकनो परिश्रम लेखे लाग्यो छे, सफाईदार अने शुद्ध मुद्रण अने आकर्षक मुखपृष्ठ ग्रंथना मूल्यमां ओर वधारो करे छे.
'पंडित वीरविजयजी स्वाध्याय ग्रंथ' मध्यकालीन गुजराती जैन साहित्यना अभ्यासीओने उपयोगी नीवडे एवं संपादन छे.
-वसंत दवे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org