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गतरेफो फलचिन्तन डोडा पान लवंग | वरतरजायफलोन्नतजाव त्रिभुवनरंग ॥ ९ (कलश)
इत्थं श्री त्रिशलासुतः स्तुतिपथं दीपालिकावासरे नीतः स्फारसुखासिकावलिकलै भौज्यैरशेषैः सुखम् । देयाद्वाचकधर्मसागरगुरोः पट्टाम्बरद्योतने सूर्य श्रीगुरुलब्धिसागरशिशोर्नमेर्मनोवाञ्छितम् ॥ १० ५. पुण्यहर्षकृत हीर- गीत
(राग सारंग चरचरी)
हीर हीर हीर रंगीलो हीर हीर हीर छबीलो
हीर हीर हीर इति मंत्र जपो लोक रे ।
धरी यु ध्यान एकमनां ले जपमालि के मनां
पाउ ज्युं मन काम मंत तंत ता इत फोक रे ॥ १ ॥ हीर०
देवदानवकिन्नरा भूतप्रेतव्यंतरा
होत तास किंकरा अउर सकल लोग ॥ २ ॥ हीर०
कहत पुण्यहर्ष एहि परमवशीकरण एहि मनमोहन एहि एहि दूजो नहि तिलोकी रे ॥ ३ ॥ हीर०
६. पुण्यहर्षकृत - विजयसेन- सूरि-गीत (राग सारंग मध्ये चरचरी)
ओश वंश गगनि चंद कोडनंद वदनचंद | देख भई आनंद रे ॥ १ ॥ ओश. आं. खंजन गंजन लोअनां चतुर लोक मोहनां । लाल अधर सोहनां दंतकंतिकुंद रे ॥ २ ॥ ओश. विजयसेनसूरिराय सुरनरकिन्नर कीरति गाय ।
दर्शनि पातक दूरि जाइ वचन अमृतकंद रे ॥ ३ ॥ भोश. कहत पुण्यहर्ष एक सुनो हृदय धरी विवेक ।
चरनकमल तुम्हहि छेक नमत भविक वृंद रे ॥ ४ ॥ ओश.
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