SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [60] ललिअंग रंगिहि ताम, सह भज्ज सुह-परिणाम । पडिवजइ सावयधम्म, धुरि बोधि सोधि सुरम्म ॥ ५५७ वलि नमिय निय-गुरु-पाय, बहु-धम्म-लद्ध-पसाय । पत्तउ सगेहिणि गेहि, रसि रमइँ दुइ बहु-नेहि ॥ ५५८ भोगवइ बहुअ विलास, पूरवइ जग सहु आस । पालंति निरतीचार, निय-देस-विरइ-वियार ॥ ५५९ कारवइ वर प्रासाद, गिरि-मेर-सिउँ लइ वाद । वित्थरइ जगि जस-साद, नव-खंडइ नरवइ-नाद ॥ ५६० दिइ सत्त-खित्तिहिँ दाण, निय देव गुरु बहुमाण । ललिअंग पुण्य-पसाइ, हुय रज्ज दुन्निह राय ॥ ५६१ बहु दिवस पालिय धम्म, अणुसरिय अणसण रम्म । ललिअंग सग्गि विमाणि, हुय देवलोकि पुण्य प्रमाणि ॥ ५६२ वलि बहुय पुण्य पयासि, सुहि लहिय नरभव-वास । महाविदेह' देव, लहस्यइ ति सिद्धि सु हेव ॥ ५६३ पुण्यइ ति धणकण-रिद्धि, पुण्यइ ति पयड प्रसिद्धि । पुण्यइ ति राणिम राज, पुण्यइ सरइँ सहु काज ।। ५६४ पुण्यइ ति सग्ग-विमाण, पुण्यइ ति पंचम-ठाण । जर्गि पयड पुण्य पवित्त, ललियंग-राय-चरित्त ।। ५६५ महिमहति मालवदेस, धण-कणय-लछि-निवेस । तिहँ नयर मंडव-दुग्ग, अहिणवउ जाणि कि सग्ग ॥ ५६६ तिहँ अतुल-बल गुणवंत, श्री ग्यास-सुत जयवंत । समरथ साहस धीर, श्रीपातसाह-निसीर ॥ ५६७ तसु रज्जि सकल प्रधान, गुण-रूव-रयण-निधान । हिंदूआ राय-वजीर, श्रीमुंजमयणह वीर ॥ ५६८ सिरिमाल-वंसवयंस, मानिनी-मानस-हंस । सोनी राय-जीवन-पुत्त, बहु पुत्त-परियर-जुत्त ।। ५६९ श्रीमलिक माफर पट्टि, हयगय सुहड-बहु-थट्टि । श्रीपुंज पुंज नरिंद, बहु-कवित-केलि-सुछंद ॥ ५७० नवरस-विलासउ लोल, नव-गाह-गेय-कलोल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy