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________________ [ 40 ] परिहरउ प्रीअ खल जल सुयण, संख जेम बहि धवल गुणि इम भणइ वर वीनती सुहिय, हियई अवधारि सुणि ॥ ३८० पूर्वी - वयण वालंभ वयण सुणउ इकवलि लिउं दूखडा जिसंचउं अमिएण कि निंबहरूखडा । तो वि कूडउ जण साउन साउ न मिल्हइ अप्पणा फुणिहाँ अइ जातइ जाति - सहाव कि दुज्जण - जण तणा ॥ ३८१ जइ रोप थुडथूल कि थाणइँ थिर करी जइ सींच थण - दूधि कि सूधइ मनि धरी ॥ तावि कुमूल बबूल कि कंटा भज्जणा फुणिहाँ अइ जातइ जात सहाव० ॥ ३८२ कुंकम कूर कपूर किज्जइ घण लाईइ मृगमद-गंध सुगंध कि दिव्विहिं ठाईइ । तावि ल्हसण नवि मिल्हइ गंध कि अप्पणा फुणिहाँ० ॥ ३८३ जइ व हीइ सिरि घालि करंडिहिँ देहसिउं जि पोसउ निसदीस कि दूधइ तेह - सिउं । तावि भुअंगम संगमि होइ न अप्पणा फुणिहाँ अइ जात जाति - सहाव० ॥ ३८४ धरम सु-गुणि धणि आखर दाखइ नेहुलउ तासु वयण - रसि जाणि कि वूठउ मेहुलउ । जइ वि कुमर मन - मोर महा - रसि तंडीया फुणिहाँ अइ तावि सरल--कुमरेण कुसंग न छंडिया ॥ ३८५ ग्रहीत- मुक्तक- आलिंगनक छंद अथ अन्नदिणम्मि मणम्मि वितक्किय किंपि छलं छल-सेस - विसेस - गवेसण दुज्जण सुयण- नरं । नर-राय सुपुच्छिय निच्छिय एम सु-पेम-परं - लोय-विवज्जिय देस - मसेस कुमार - गुणं ॥ ३८३ पर- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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