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________________ [39] इम जंपइ रायकुमारि, प्राणि प्रिय अवधारि, मन शुद्धि-सुं-विचारि, अम्ह वयणं ।। ३७६ मोटा मोटा जिके रायराण चऊद-विद्या-निहाण, बहुतरि कला-सुजाण, आगह हुआ । नल विकम भोज भूपति हरि हरिचंद सति, हय-गय-रह-पत्ति-पायक-जुअ । छांडिउ छांडिउ तेहे नीचे संगः, पतंग-सरिस-रंग, छेहि दाखइ निय अंग, बहुअ-जण । इम जंपइ रायकुमारि ॥ ३७७ जिम सुणीइ आगइ सरूव, हंस-रूव काय भूवि हिणिय हसत भूव, जंपंत बुहं । इम ताहुं काय महाराय, भणीजु सु पंखिराय, नीच-संग-सुपसाइ, पामिय दुहं । तिम बीजउ ई जिको-वि मुद्ध दुयण-संगति-लुद्ध धवलति सहु दुद्ध, जाणत घणं । इम जंपइ रायकुमारि ॥ ३७८ वरि भलउ वणि निवास, पर-घरि कम्म-दास, विसहर-सुउँ संवास, बहुअ वरं । वरि भलउ विस-आहार, जलंत-जलणि चार, उवरि खडग-धार चाल वरं । पिण भली न खल-प्रीति, हुइ नितु बुह-चीति, पडइ पिसुण-छीति, पवरजणं । इम जंपइ रायकुमारि ॥ ३७९ षट्पदः अम्ह वयण अणुकूल कह-वि मन्नि जइ सामिय, देवि सद्द जिम वाम राम देसंतरगामिय । कुलह नामि आचार एह नवि सिक्ख स-कंतह । दिज्जइ कारणि कवणि सु पुण प्रियतम एकंतह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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