SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [12] यतः दीसइ विविहच्चरियं ॥१०४ पद्धडी चल्लिउ कुमर निसि एम चिंति, कमलुज्जल-कोमलकाय-कंति । पक्खरिउ पवण-जव वर-पवंग, तसु उप्परि आसण-ठाण-रंग ॥१०५ चडि चल्लिउ चंचलि तुरय-वेग, मण पवण सुयण बल हूअ अणेग । दिइ देविय देवी वाम सद्द, ललियंगकुमर तुम्ह होइ भद्द ।।१०६ भइरव भय वारइ दहिणंगि, चिव्वरिय चतुर पणि चवइ अंगि। राया रायत्तण कहइ वाम, लालिय सवि टालइ वेरि ठाम ॥१०७ दाहिणि दिसि हुइ हणुमंत हक्क जाणि कि जय कुमर पयाण-ढक्क । सारंग नाम बहु अत्थ होइं, ते सयल सबल दाहिणइ जोइ ।।१०८ हणमंत हरिण चातक चकोर, बग सारस सारय हंस मोर ।। सावड सुणय-वि भला एअ, जिम-बुल्लिय आगम-ग्रंथि जेअ॥१०९ करि करिय कुमर करवाल मित्त, जे सबल सया उज्जोय-चित्त । भय-भीडइं सारइ बहु अ काम, जिणि करि सूरत्तण लहइ नाम ॥११० ते समरथ सुदढ सहाय एक तसु वल-दलि चल्लिउ कुमर छेक। तसु गमण मणिंगिय बुद्ध जाम, सज्जण पुण पुट्ठिहि थियउ ताम ।।१११ अप्पा गुण दोस मुणइ स अप्प, जिम बुज्झइ सप्प हत्थि सिण सप्प । तिम सज्जण दुज्जण निय-सुहाई, सुपुरिस सच्छह छिण-कच्छ छाइ ॥११२ उत्तम नवि करइ वियार एम, पर-अप्प-विगति नवि रोस पेम।। सम-सत्तु-मित्त उत्तम चरित्त, सम-विसम-समय पर-कज्जि चित्त ।।११३ दूहा सज्जण अतिहि पराभविउ, मनिहिँ न-आणइ डंस । छेदिउ भेदिउ दूहविउ, मधुरउ वाजइ वंस ॥११४ उवयारह उवयारडउ, सव्वह लोय करेइ० ॥११५ षट्पदः नवि जंपइ परदोस अप्प पर-जणु-गुण वच्चइँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy