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________________ [5] अइ वज्जिय देवहिँ गीय-नट्ट, ए पयड पहुवि गि नीइ-वट्ट । जं लहइ लहु-वि पर अप्प-भाउ, ते राय-हंस नर गुरु-सहाउ ॥३७ जं अवसरि दिज्जइ अप्प-दाण, तं लब्भइ पर-भवि फल अमाण । अवसर-विण दिन्नउँ कोडि-मानि, तं जाण विरुन्नउँ सुन्नरानि ॥३८ अवसर-विण वुट्टउ घण अणि?, अवसर-विण मिल्लिउ न भलउँ इट्ठ । अवसर-विण जे जगि करइँ काम, ते लहइँ पुरिस-वर मूढ नाम ॥३९ दूहा जे अवसर नवि ओलखइं, लखइँ न छेग-छइल्ल । ते नर-रूव निसिंग जिम, अहिणव जाणि बइल्ल ॥४० इम तसु वयण वयण सुणवि, कुप्पिउ नरवइ एम । भाल भिउडि भीसण नयण, फुक्किय हुअवह जेम ॥४१ कुंडलीउ चित्ति चमक्किय चिंतवइ, नीइ-निउण-नरनाह जोव्वणए तसु पुत्त पिण, मित्त-सरिस गुण-गाह मित्त-सरिस गुण-गाह वाह जिम मिल्हिय वग्गिहिँ मग्म कुमग्ग नवि गणइ नवि नेह सवग्गिहिँ धण-जुव्वण-मय-मत्त रत्त विस-वसण निसंकिय इम चिंतंत नरिंद नोइ निय-चित्ति चमक्किय ॥४२ गाथा जाओ हरइ कलत्तं, वढेतो वज्जियं हरइ दव्वं । x x x x x x पुत्त-समो वेरिओ नत्थि ॥४३ हक्कारिऊण कुमरं, निय-पिय-पयकमल-भत्ति-भर-भमरं । पच्छन्नं पुहवीसो, पभणइ महुराएँ वाणीए ॥४४ चालि सुणि सिक्ख कुमर नरेस तुं अच्छइ सुगुण सुवेस । वडचित्त वसुहाँ वीर, गुरुअपणि गुण-गंभीर ॥४५ तह किम विहिइ उवएस, तुझ दिअउँ वच्छ असेस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520508
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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