SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [93] साहिब मुष, दिषवानिं दिदार, नामने भरुसें आव्यो छु दिदम् षातर नाम बे नाम बे, हे तु षावन हे, बंदे के अंतरका इसक तीसका षावन् तू तुं हि बे सांइयां बंद अंतर इसकम् जब तेरी सरत आइ उनसे बचे बचें सरत आमदे [ बे ] आमदे [ बे ] अ० गो० ४ एक बालका मेरे जोषम नही हैं एक बालकी जलेल नाही तेरा दावन पकडया हें, तीस वास्ते दावन् ( दामन् ? ) साथ गु रक्ति बे रक्ती बे बंदा मोहन कहेता हैं, हे परमेसर ! रायब मोहन गोयद् साहिब ! उसके तांइ नरकदूषे न होवे उसकु दोष रक्ती बे रक्ती बे, अ० गो० ५ माला किहां छै रे ए देशी । गोडी पार्श्व गरीबनो पालणहार फकीर गौरी पास गरीबनवाज गदा यारा, दीतुं मुख आकुनै (?) दिवसै दीकरानुं वामाराणीना दिदैं रूइ अम रोज फर्जन वामारा । टेक । पहेला कोई आगलि मै जोउं परमेश्वर । पेश कसे मन् बुरवम् कादर पग ताहरा न छोडुं पाय तोरा न बुग्जारि बे । वाराही । जेंवितहेपंतंषील । (लषतं पं. हेतविजें ) संसारमां मोटी जाइगा छोडीने प्रभुनै घडी घडी करूं छु दर गेति जो चुनम् हरदम करदै Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy