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________________ अण्णं च नाणमाइय, गुणेहिं पव्वज्जमाइयं व इमं । संतेहिं होइ संतं तेहिमसंतेहिं तमसंतं ॥२५॥ ता आउअस्स थोवा थोवत्तेणं किमित्थ संपण्णं । अण्णह थोवठिईणं विहलं पव्वज्जमाई वि ॥२६॥ अह जह नाणाइ गुणा तहेव दीहाउयमाइया वि गुणा । एगस्सावि अभावे ता पट्टधरत्तणमज्जुत्तं ॥२७॥ एवं जुत्तं वुत्तं गणहरभावो खओवसमिओ त्ति । तं पइ दूसगभूसगभावाभावाउ आउस्स ॥२८॥ जेण पुण नाणदंसणचरणगुणा दूसिआ हवंति फुडं। दूसिज्जए गणित्तं तेणं मिच्छत्तदारेणं ॥२९॥ जह अग्गीओ वावण्ण दिट्ठिओ अमुणिऊण ठविओ वा । केवल नामेण गणी मिच्छद्दिठी स परिवज्जो ॥३०॥ यतः -- जं जयइ अगीयत्थो जं च अगीयत्थणीसिओ जयइ । वट्टावेइ य गच्छं अणंतसंसारिओ होइ ॥३१॥ १. अह गणणुण्णा एगा, बीयं दीहाउयत्तणं जं च । तद्गमवि जत्थ भवे पट्टधरो सो हवइ णण्णो ॥१॥ तंमिच्छा जं जुगवं दुन्निवि ते हुति णेय कस्सावि । विसरिससमये हि पुणो भावेहि न होइ सामग्गी ॥२॥ मिउ पिंड दंडमाइय भावेहिं जगमेव मिलिएहिं । होइ जहा सामग्गी कलसुप्पत्ताइ समयंमि ॥३॥ किंच -- दीहाउयस्स न जहा पट्टो नियगेण गोयमाइव्व । तहणुण्णायगणस्सवि इमस्स नस्थित्ति कत्थवि णो ॥४॥ वेवीसमी गाथा पछी उमेरवा माटेना चिह्न साथे आ चार गाथा स्वतंत्र अङ्कपूर्वक बीजा पत्रनी बीजी पूंठीना मथाळे लखी छे. तेथी ते मूळ ग्रंथमा सामेल न करतां पादनोंधमां मूकी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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