SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [40] केवलिशरीरथी कोइनिं भय न ऊपजइ एहवूं कल्पि तो 'मंता मतिमं अभयं विदित्ता' इत्यादिक सूत्रनी मेलि यतीमात्रना शरीरथी जीवनिं भय उपजवो न घटइ ॥ ८६ ॥ श्रीवर्धमाननि देखीनिं हाली नाठो तिहां कोइ इम कल्पना करइ छइ जे ‘“तिहां हालीना योग कारण, पाणि भगवंतना योग कारण नहि" ते अति खोटं, जे माटिं 'भगवंतं दट्ठूण धमधमेइ' एहवूं व्यवहारचूर्णि कहि छइ तेहनि अनुसारि भगवंतना योग ज तिहां कारण जाणइ छइ तथा अन्यकर्तृक भय तेरमिं गुणठाणि होइ तो चउदमा गुणठाणानी परि अन्यकर्तृक हिंसा पणि हुई जाईइ ते तो स्वमत विरुद्ध ॥८७॥ 'सव्वजियाणमहिंसं' इत्यादिक सूत्रनी मेलिं जे केवलीनिं अवश्यभाविनी हिंसा ऊथापइ छइ तेहनि मतिं हिंसाइदोससुन्ना इत्यादिक सूत्रनी मेलि सामान्य साधुनिं पणि ते ऊथापी जोईइ ॥ ८८ ॥ " जलचारणादिक लब्धिमंत यतीनि जलादिकमां चालतां जलादिक जीवनो घात ज न होइ तो सर्वलब्धिसंपन्न केवलीनिं ते किम हुइ" एहवूं कहइ छइ ते न घटइ, जे मार्टि लब्धिफल सर्व केवलीनिं छइ तो हि पणि लब्धिप्रयोग नथी ॥८९॥ "घातिकर्मक्षयथी ऊपनी जीवरक्षाहेतु लब्धि प्रयुंज्या विना ज केवलीनि हुइ" एहवूं मानइ छइ तेहनिं मतिं चउदमिं गुणठाणइ मशकादिकर्तृक मशकादिवध मान्यो छइ तेह पणि न मिलइ, नहीं तो तेरमिं गुणठाणइ पणि तेहवो ते मान्यो जोईइ ॥९०॥ 4 " द्रव्यहिंसाई केवलीनि १८ दोषरहितपणूं न घटइ" एहवूं कहइ छइ तेहनिं मतिं द्रव्यपरिग्रह छतां पणि १८ दोषरहितपणूं न मिलइ ॥ ९१ ॥ "प्राणातिपात मृषावादादि छद्मस्थलिंग मोहनीय अनाभोगमां एकइ विना न हुइ ते माटिं बारमिं गुणठाणइ मृषा भाषा कर्मग्रंथादिकमां कही छई स संभावनारूढ जाणवी," एहवूं कहइ छइ तेहनिं पूछवूं जे द्रव्यभाव विना संभावनारूढ त्रीजो किहां कहिओ छइ कालशूकरिकनिं कल्पित हिंसानी परिं ए संभावनारूढ मृषावाद लेवो एहवूं लिख्यूं छइ तेहनि अनुसारिं तो अंतरंग भावभृषावाद ज बारमइ गुणठाणइ आवइ ||१२|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy