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एहवू आचारांगचूर्णिमा कहिउं छइ तिहां चउदमि गुणठाणइ योग नथी ते माटिं तिहां केवलिकर्तृक मशकादिवध न होइ पणि मशकादिकर्तृक ज होइ, तद्गतोपादानकर्मबन्धकार्यकारणभावप्रपंचनिं अथिं ए ग्रंथ छड् एहवी कल्पना करइ छइ ते खोटी, जे मार्टि सामान्यथी साधुनिं अवश्यभाविजीवघातनि अधिकारि ज ए ग्रंथ चाल्यो छइ. तथा चउदमि गुणठाणइ मशकादिकर्तृक ज मशकादिघात कहिइ तो पहिला पणि तेहवो ते होइ युक्ति सरिखी छइ ते मार्टि मोहनीयकर्म होइ तिहां तांइं जीवघातकर्ता कहिइ एह वचन पणि प्रमाणिक नहि, जे मार्टि प्रमादि ज प्राणातिपातकर्ता कहिओ छइ इत्यादिक इहां घणूं विचारवू ||८१।।
"प्राइं असंभवी कदाचित् संभवइ ते अवश्यभावी कहिइ एहवो जीवघात अनाभोगि छद्मस्थसंयतनि होइ पणि केवलीनिं न होइ" एहवू कहइ छइ ते न घटइ, जे माटि अनभिमतपणइ पणि अवर्जनीय ते अवश्यभावी कहिइ तेहवो द्रव्यवध अनाभोग विणा पणि संभवइ जिन यतीनि नदी ऊतरतां ॥८२।।
"केवलीना योग ज जीवरक्षानुं कारण" एहवू कहइ छइ तेहनि मति चउदमइ गुणठाणइ जीवरक्षाकारणयोग गया ते माटि हीनपणूं थयूं जोईइ ॥८३।।
___ "केवलीनिं बादरवायुकाय लागइ तिवारि तथा नदी ऊतरतां अवश्यभाविनी जीवविराधना थाइ तिहां जे एहवू कल्पइ छइ बादरवायुकाय अचित्तज केवलीनिं लागइ तथा नदी ऊतरतां केवलीनिं जल अचित्तपणइ ज परिणमइ" तिहां कोई प्रमाण नथी, केवल योगनो ज एहवो अतिशय कहिइ तो उल्लंघन-प्रलंघनप्रतिलेखनादि व्यापारनूं निरर्थकपणुं थाइ ॥८४॥
एणि ज करी ए कल्पना निषेधि जे केवली गमनादिपरिणत होइ तिवारिं आपि ज कीडी प्रमुख जीव ओसरइ अथवा ओसरिया होइ पणि केवलीनी क्रियाइं प्रेरी क्रिया न करइ, जे मार्टि इम कहतां जीवाकुल भूमि देखी केवलीनि उल्लंघनादि व्यापार पत्रवणामांहि कहिओ छइ ते न मिलइ तथा वस्त्रप्रतिलेखना पणि न मिलइ ।।८५॥
"अभयदयाणं ए सूत्रनी मेलिं भगवंतना शरीरथी जीवनि सर्वथा भय न उपजइ'' एहवू कहइ छइ ते न मिलइ, जे माटि भगवंत वस्त्रादिकथी जीव अलगा मूकइ तेहनि भय विना अपसरण न संभवइ. तथा 'अभयदयाणं' ए वचनि
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