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________________ [34] प्रमाद गणिइ तेहथी प्रमत्तसंगत लगइ द्रव्याश्रव होइ अनि अप्रमत्तनिं मोहनीयअनाभोग २ थी ते होइइ, इत्यादिक कल्पना पण निषेधी जाणवी । जे मार्टि अप्रमत्तनिं द्रव्यपरिग्रहनि ठामि ए युक्ति न मिलइ तथा चारित्रमोहनीय सर्वनिं उदयथी भावश्र्व कहिइ तो ४ गुणठाणादिकिं न घटइ | केतलाएकनो उदय लीजइ तो ते यतीन पणि छइ ३ कषायनी उदयसत्तानी मेलि भावश्रव द्रव्याश्रवनो परिणाम कहिइ तो तेहनिं क्षई छद्मस्थानं पणि द्रव्याश्रव न हुआ जोईइ, तथा प्रमादि भावाश्रव कहिओ छइ इत्यादिक न घटइ ॥५९॥ 'अयतनया चरन् प्रमादानाभोगाभ्यां प्राणिभूतानि हिनस्ति" एहवूं दशवैकालिकवृत्तिमां कहिउ छइ ते मार्टि प्रमाद अनाभोग विना केवलीनिं द्रव्यहिंसा न हुइ" एहवी मूलयुक्ति कहइ छइ तेहज खोटी, जे माटिं अवश्यभाविहिंसानां ए कारण न कहियां । केवला अयतनानि उद्देशि ए कारण कहियां सघलइ ए हेतु लीजइं तो आकुट्टिकादिक भेद न मिलइ ||६० || 44 "केवलीनिं द्रव्यहिंसा होइ ते सर्व प्रकार जाणतां हिंसानुबंधी रौद्रध्यान हुइ" एहवूं कहइ छइ ते खोटुं, जे मार्टि इह कहतां द्रव्यपरिग्रह छइ तेहना सर्वप्रकार जाणतां संरक्षणानुबंधी रौद्रध्यान पणि न वारिडं जाइ ॥ ६१ ॥ प्रमत्तसंयत शुभयोगनी अपेक्षाई अनारंभी अशुभयोगनी अपेक्षाई आरंभी भगवतीसूत्रमां कहिया छइ तिहां 'शुभयोग ते उपयोगि क्रिया, अशुभयोग ते अनुपयोगि' एहवूं वृत्तिं कहिउं छइ ते ऊवेषी अशुभयोग अपवादि कहइ छइ ते प्रकट विरुद्ध, जे माटिं जाणी मृषावाद मायावत्तिया क्रिया भणी अप्रमत्तनि पणि प्रकट जाणइं छइ तथा अपवादि पणि शास्त्ररीतिं बृहत्कल्पादिकिं शुद्धता ज कही छइ तो अशुभयोग किम कहि ||६२|| "आरंभिकी क्रिया छ गुणठाणइ सदा होइ, " एहवूं लिख्यूं छइ ते न घटइ, जे मार्टि अन्यतरप्रमत्तनिं कायदुः प्रयोगभावि ज आरंभिकी क्रिया पनवणासूत्रवृत्तिमां कही छइ ।। ६३ ।। "केवलीनिं अपवाद नोहि ज" एहवूं कहइ छइ ते न घटइ, जे माटिं रात्रिं हिंडन, श्रुतव्यवहार प्रमाण राखवा निमित्त अनेषणीय आहारग्रहणादिक अपवाद केवलीनिं पणि कहिया छइ ॥ ६४ ॥ Jain Education International Y For Private & Personal Use. Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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