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________________ [23] छे, तेमां "समयसारसूत्रवृत्ति" नुं पण नाम छे. ते उपर टिप्पणी करतां पूर्वप्रकाशनना संपादके "इस प्रकारका गन्थ कौन सा है ? यह ज्ञात नहीं है। यहां जो साक्षी ग्रन्थ है वे श्वेताम्बरीय हैं । अत: 'समयसार' की कल्पना नहीं की जा सकती है।" आवी नोंध मूकी छे, जे बराबर नथी, अने संपादकनी ओछी सज्जतानुं सूचन आपे छे. "समयसार" नामे एक प्राकृत-गाथाबद्ध रचना श्वेतम्बराचार्यनी पण छे, अने सभ्भवतः यशोविजयजी तेने ज टांकता होय तेम जणाय छे. समग्रपणे ग्रन्थावलोकन करतां जणाय छे के उपाध्याय श्री धर्मसागरजी महाराजे पोताना ग्रन्थोमां जे केटलीक प्ररूपणाओ करी हती, तेने कारणे तेमणे गुरुओ तथा गच्छनायको वगेरेनो रोष वहोरवो पडेलो, माफीपत्रो आपवां पडेला अने पोताना अमुक ग्रन्थोने जलशरण पण करवा पडेला. छतां ते ग्रंथोनो प्रचार तेमना परिवार द्वारा शरु ज रह्यो होवाथी ते ग्रंथोनी अमान्य करवी पडे तेवी वातोमां समाज अनाभोगे पण न खेंचाय, ते हेतुथी सैद्धान्तिक स्पष्टता करतो आ बोलसंग्रह श्रीयशोविजयजी महाराजे रच्यो छे, जे तेमना जेवी अतिसमर्थ प्रतिभा माटे ज शक्य अने न्याय्य छे. आ ग्रन्थनी कर्ताना स्वहस्ताक्षरनी प्रति मारा पूज्य गुरुजी श्री विजयसूर्योदयसूरिजीना संग्रहमांथी प्राप्त थई छे. तेना ८ पत्रो छे. दोडती कलमे लखायेला खरडा जेवी ओ प्रति छे, छतां शुद्ध छे. आ प्रतिना अंतमां "सम्यक्त्वनी दृढता करवी सही" एम लखाण पूरूं थाय छे ते साथे ज कर्ताए स्वहस्ते १०८ एवो अंक लख्यो छे, जे १००- आम पण वंचाय छे, अने १०८ एम पण वांची शकाय छे. संभव छे के आनी नकल करनाराओए १०८ वांच्युं होय अने ते परथी १०८ बोलसंग्रह एवं नाम प्रवत्र्यु होय. ग्रन्थान्ते कोई वर्ष, स्थल वगेरेनो उल्लेख नथी. प्रतिना आठमा पानानी बीजी पुंठी पर उपाध्यायजीए स्वहस्ते करेली विविध ढूंकाक्षरी के सांकेतिक शास्त्रीय नोंधो छे. पोताने कोई ठेकाणे उपयोगमां लेवाना पाठो के पदार्थो जड्या के सूझ्या होय तेनी आ नोंध करी राखी होय तेम लागे छे. अवसरे आ नोंध उकेलीने विद्वानो समक्ष मूकवानुं मन छे ज. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520507
Book TitleAnusandhan 1996 00 SrNo 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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